SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीति वाक्यामृतम् तब ही तदनुसार निर्णय लेना चाहिए कि अमुक राजा के साथ सन्धि करना है ? या विग्रह करना है ? इत्यादि । इसी प्रकार अर्द्ध देश पर विजय पताका फहराने लगी तो अब अशेष राज्य पर शासन किस प्रकार या उपाय से करना चाहिए । भूमि आदि के विषय में भी यदि कुछ जानकारी हुयी तो उसे पूर्ण रूप से जानना या नहीं जानना इत्यादि समस्त विषयों का हल एक ही सिद्ध होगा कि प्रत्येक कार्य सिद्ध हो सकता है आदि । इन समस्त कार्यों की सिद्धि में मुख्य मन्त्री का परामर्श अनिवार्य है । सचिव की राह से समस्त कार्य चलते हैं । अन्यथा सर्व गट-पट होकर 'विजय' होने के स्थान पर पराजय ही हाथ लगेगी । निसन्देह मन्त्रणा द्वारा ही कार्यों की सिद्धि होती है ।। विद्वान गुरु ने भी कहा है : अज्ञातं शत्रुसैन्यं च चरैर्जेयं विपश्चिता । तस्य विज्ञात मध्यस्य कार्य सिद्धं नवेति च ।।1।। अर्थ :- शत्रु सेना यदि अज्ञात है तो प्रथम अपने योग्य गुप्तचरों द्वारा राजा को उसकी सेना की संख्या, योग्यता, व्यवस्थादि के बारे में सम्यक्-भलीप्रकार ज्ञात कर लेना चाहिए। अवगत होने पर निर्णय-विचार करे कि हमें उसके साथ सन्धि, विग्रहादि में से क्या करना उचित है । कौन कार्य सिद्ध होगा ? कौनसा नहीं होगा इत्यादि । निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि विजिगीषु राजा को अप्राप्त राज्य की प्राप्ति और प्राप्त की सुरक्षार्थ श्रेष्ठ योग्य अनुभवी, बुद्धिमान, राजनीति के धुरन्धर विद्वानों, अनुभवी मन्त्रिमण्डल के साथ बैठकर मन्त्र का विचार करना आवश्यक है ।23।। मन्त्रियों का लक्षण व कर्त्तव्य : अकृतारम्भमारब्धस्याप्यनुष्ठानमनुष्ठित विशेष विनियोग सम्पदं च ये कुर्युस्ते मांत्रणः ।।24।। अन्वयार्थ :- (ये) जो (अकृतम्) किये नहीं उनको (आरम्भम्) प्रारम्भ (आरब्धम्) प्रारंभ हुओं को (अपि) भी (अनुष्ठानम्) पूर्ण, (अनुष्ठितम्) पूर्ण हो चुके उनको (विशेषम्) विशेष वृद्धिंगत (विनियोग सम्पदम्) अधिकार सम्पदा का विशेष प्रभाव (कुर्युः) करते हैं (ते) वे (मान्त्रणः) साचिव्य करने वाले [सन्ति] होते हैं ।।24। जिन कार्यों का श्री गणेश नहीं हुआ उन्हें प्रारम्भ करे, प्रारम्भ किये हुए कार्यों का संवागीण विकास करे। तथा अपने अधिकारों का यथोचित सम्मान व मर्यादा रखकर प्रभुत्व प्रदर्शित करे । इस अपने गुणों में निष्णात होना अत्यावश्यक है। विद्वान शुक्र के इस विषय में विचार : दर्शयन्ति विशेषं ये सर्वकर्मसु भूपतेः । स्वाधिकार प्रभावं च मंत्रिणस्तेऽन्यथा परे । अर्थ :- जो तीक्ष्ण बुद्धि कुशल व्यक्ति राजा के सम्पूर्ण कार्यों में विशेषता अपनी सलाह दिखाते हैं-दर्शाते हैं और अपने अधिकारों एवं प्रभाव की भी सुरक्षा रखते हैं वे ही मन्त्री कहलाते हैं अन्य इससे विपरीत मन्त्रि होने के योग्य नहीं हैं । 235
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy