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- नीति वाक्यामृतम्
ही अल्प मूल्य की वस्तु बहुमूल्य की वस्तु में मिलाकर दे देते हैं । दूध में आराम से पानी झोक देते हैं । वासी मिठाईयों को ताजा के साथ पार कर देते हैं । अतः प्रत्यक्ष चोरी सिद्ध ही है । श्री वल्लभदेव विद्वान ने भी लिखा है :
मानेन किंचिन्मूल्येन किंचित्तुलयाऽपि किंचित् कलयाऽपि किंचित् । किंचिच्च किंचिच्च गृहीतुकामाः प्रत्यक्ष चौरा वणिजो नराणाम् ।।
अर्थ :- वणिक लोग नापने-तोलने के बाटों में गोलमाल करके, वस्तुओं का मूल्य बढ़ाकर और चतुराई से विश्वास दिलाकर लोगों के धन का अपहरण करते रहते हैं । अतएव ये मनुष्यों के मध्य में प्रत्यक्ष चोर कहे जाते हैं 117 ॥ ईर्ष्या से वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देने पर राजा का कर्त्तव्य :
स्पयामूलाद्धिभाण्डेषु राज्ञो यथोचित मूल्यं विक्रेतुः ||18॥ अन्वयार्थ :- (स्पर्द्धया) ईर्ष्या से (मूलवृद्धिः) मूल्य में वृद्धि (भाण्डेषु) विक्रय की वस्तुओं में करें तो (राज्ञः) राजा का कर्तव्य है (विक्रेतुः) बेचने की वस्तु का (मूल्यम्) मूल्य (यथोचितम्) यथार्थ (कुर्यात्) करे।
पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष से यदि बेचने की वस्तुओं में व्यापारी जन-मन-माना मूल्य बढ़ा दें तो राजा का कर्तव्य है उसे यथोचित कीमत में बिकवाये ।
विशेषार्थ :- व्यापारी वर्ग में परस्पर होड़ लग जाती है, ईर्ष्या हो जाती है । अपना व्यापार वृद्धि के उद्देश्य से वस्तुओं की कीमत में कमी वेशी कर देते हैं । शॉर्टिज होने पर मनमाना मूल्य बढ़ा देते हैं इस परिस्थिति में साधारण जनता को कष्ट होने लगता है । साधारण स्थितिवाले पीडानुभव करते हैं । दारिद्रय छा जाता है । अत: राज्य और प्रजा की स्थिति का सन्तुलन बनाये रखने के लिए राजा को व्यापारियों की नीति पर अंकुश लगाना चाहिए। हारीत विद्वान ने लिखा है :
स्पर्द्धया विहितं मूल्यं भाण्डस्याप्यधिकं च यत् । मूल्यं भवति तद्राज्ञो विकेतुर्वर्धमानकम् ॥
अर्थ :- व्यापारी वर्ग द्वारा स्पर्धा से वस्तुओं का मूल्य बढाये जाने पर वह वृद्धिंगत मूल्य राजा का ही होता है और व्यापारी को उचित मूल्य ही प्राप्त होना चाहिए 118
सुवर्णादि बहुमूल्य वस्तु के साथ अल्पमूल्य की वस्तु मिलाकर विक्रय करने पर बेचने वाले के प्रति राजा का कर्तव्य:
अल्प द्रव्येण महाभाण्डं गृहणतो मूल्याविनाशेन तद्भाण्डं राज्ञः ।।19॥ ___ अन्वयार्थ :- (अल्पद्रव्येण) कम मूल्य द्वारा (महाभाण्डम्) वस्तुएँ (गृह्णतः) ग्रहण करने वाले :
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