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विषय
पृष्ठ संख्या 3. डरपोक, अतिक्रोध, युद्धकालीन राजकर्तव्य, भाग्य माहात्म्य बलिष्ठ शत्रु के
प्रति राजा का कर्तव्य 4. भाग्य की अनुकूलता, सार असार सैन्य से लाभ-हानि युद्धार्थ राज प्रस्थान 5. प्रतिग्रह का स्वरूप व फल, युद्ध की पृष्ठ भूमि, जल माहात्म्य 6. शक्तिशाली के साथ युद्ध हानि, राज कर्तव्य, मूर्ख का कार्य
प्रशस्त गय त्याग चलिमा शव को न देने का दुष्परिणाम, धन न देने का तरीका
अर्थ न देने से आर्थिक हानि, स्थान भ्रष्ट राजा व समष्टि का माहात्म्य 9. दण्डसाध्य शत्रु व दृष्टान्त, शक्ति व प्रतापहीन का दृष्टान्त, शत्रु की चापलूसी 10. अकेला युद्ध न करे, अपरीक्षित शत्रु व भूमि 11. युद्ध या उसके पूर्व राज-कर्तव्य, विजय प्राप्ति मन्त्र, शत्रु पक्ष को अपने में मिलाना 12. शत्रुनाश का परिणाम व दृष्टान्त, अपराधी के प्रति राजनीति 13. विजय का उपाय, शक्तिशाली का कर्तव्य व उन्नति, सन्धियोग्य शत्रु, तेज 14. लघु शक्ति वाला बलिष्ठ से युद्ध का फल व दृष्टान्त, पराजित के प्रति राज नीति,
शूरवीर शत्रु के सम्मान का दुष्परिणाम 15. समान शक्ति या अधिक शक्तिवाले के साथ युद्ध से हानि, धर्म, लोभ व असुर
विजयी राजा का स्वरूप असुर विजयी के आश्रय से क्षति 16. श्रेष्ठ के सन्निधान से लाभ, निहत्थे पर प्रहार अनुचित, युद्ध से भागने वाले बन्दियों से भेंट 17. बुद्धि सरिता का बहाव, वचन प्रतिष्ठा, सदसद् पुरुषों का व्यवहार, पूज्यता का साधन 18. वाणी की महत्ता, मिथ्या वचनों का दुष्परिणाम, विश्वासघात-आलोचना, असत् शपथ परिहार 567 19. सैन्य व्यूह रचना का कारण स्थिरता, युद्धशिक्षा, शत्रुनगर प्रवेश का समय 20. कूट युद्ध व तूष्णी युद्ध, अकेले सेनाध्यक्ष से हानि
568 21. ऋणीराजा, वीरता से लाभ, युद्ध विमुख की हानि, युद्ध प्रस्थान व पर्वतवासी का
कर्तव्य, छावनी योग्य स्थान, अयोग्य पडाव से हानि, शत्रु भूमि में प्रविष्ट होने के विषय में राजकर्तव्य
569 22. पर्वतीय गुप्तचरों का कर्तव्य 31 विवाह समुद्देशः
572 से 577 1. काम सेवन को योग्यता, विवाह का परिणाम, लक्षण ब्राह्म, देवादि चारों विवाहों का स्वरूप
572 2. गांधर्वादि विवाहों के लक्षण, उनकी समालोचना, कन्यादूषण
पाणिग्रहण की शिथिलता का दुष्परिणाम, नव वधू को प्रचण्डता का कारण उसके द्वारा तिरस्कार व द्वेष का पात्र, प्रास होने योग्य प्रणय का साधन, विवाह योग्य गुण एवं उनके अभाव से हानि
575 कन्या के विषय में, पुनर्विवाह में स्मृतिकारों का अभिमत, विवाह सम्बन्ध, स्त्री से लाभ, गृह का लक्षण, कुलबधू की रक्षा के उपाय, वेश्या का त्याग, कुलागत कार्य 576
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