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________________ विषय 92. किसके साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए 93. स्नेह नष्ट होने का क्या कारण है। 94. शत्रु क्या करते है 95. मनुष्यों की अनाकांक्षा 96. लोभ का स्वरूप 97. जितेन्द्रिय की प्रशंसा 98. सन्तोषी पुरुषों का कार्य मूर्ती कार्य 100. अधमपुरुषों का कार्यारम्भ 101. भयशंका का त्यागपूर्वक कर्तव्य प्रवृत्ति 102. कार्यारम्भ में विघ्नों का आना 103. दुष्ट अभिप्राय वालों के कार्य 104. महापुरुषों के गुण व मृदुता लाभ का विवेचन 105. प्रिय वचनों से लाभ 106. दुर्जन व सज्जन का स्वरूप 107. क्रोधी, विचारशून्य और गुप्त बात प्रकट करने वाले पुरुष से हानि 108. शत्रुओं पर विश्वास करने से हानि 109. चंचलचित और स्वतन्त्र पुरुष की हानि 110. आलस्य से हानि और कर्त्तव्य मनुष्य 11. शत्रुविनाश के ज्ञाता को लाभ का दृष्टान्त और नैतिक कर्त्तव्य 112. मूर्ख व जिद्दी को उपदेश देने से हानि 113. नितिशून्य पुरुष की क्षति 114. कृतघ्न सेवकों की निन्दा 115. क्षुब्ध का वशीकरण व राजय का कर्त्तव्य 11. पुरोहित समुद्देशः 1. पुरोहित राजगुरू का लक्षण 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. मंत्र पुरोहित के प्रति राजकर्त्तव्य अपत्तियों का स्वरूप व भेद तथा राजपुत्र की शिक्षा सेवा के साधन, विनय का लक्षण व फल गुरु विद्याभ्यास का फल माता पिता से प्रतिकुल पुत्र की कटु आलोचना और पुत्र कर्तव्य गुरु, गुरुपत्नी, गुरुपुत्र व सहपाठी के प्रति छात्र का कर्तव्य शिष्य कर्त्तव्य व अतिथियों से गोपनीय विषय 12 पृष्ठ संख्या 276 276 277 278 278 278 279 279 279 280 280 281 281 282 283 285 286 286 787 290 292 292 293 294 298 से 310 298 298 299 299 300 303 304 305
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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