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प्रकाशकीय
निब-प्रवचन का यह सरल-सुन्दर संस्करण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए आज हम अतीत की अनेक सुखद स्मृतियों में गोता लगा रहे हैं ।
आज से लगभग ५० वर्ष पूर्व एक दिन जगदुवल्लभ, जैन दिवाकर, प्रसिद्ध वक्ता पं० श्री चौथमलजी महाराज साहब के अन्तःकरण में एक पुनीत परिकल्पना स्फुरित हुई थी कि साधारण जिज्ञासुओं को जिनवाणी का नित्य स्वास्याय तथा मनन-चिन्तन हो सके इसलिए आगम वाणी का एक सरल संकलन होना चाहिए ।
संकल्प के घनी गुरुदेवश्री ने 'शुभस्य शीघ्रम्' के अनुसार आगम-वाणी का चयन प्रारम्भ किया, गाथाएं चुनी गई । उन संग्रहीत गाथाओं को साहित्य प्रेमी गणिवयं पं० उपाध्यायश्री प्यारचंदजी महाराज ने विषयानुक्रम किया और एक सुन्दर संकलन तैयार हुआ । निर्ग्रन्थ- प्रवचन का जब प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ तो साहित्य जगत में एक हलचल मच गई थी। जिस किसी विद्वान् विचारक और जिज्ञासु सहृदय ने यह पुस्तक देखी, वह झूम उठा और मुक्तकंठ से सराहना करने लगा। कुछ ही समय में इसको इतनी माँग बड़ी कि हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं में कई संस्करण प्रकाशित हुए और हाथों-हाथ समाप्त हो गये । निर्ग्रन्थ प्रवचन का वृहद् माष्य भी प्रकाशित हुआ तो कई गुटका संस्करण भी छपे ।