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निरन्थ-प्रवचन
छाया:-श्रुतानि मया नरकस्थानानि, अशीलानां च या गतिः ।
बालानां क रकर्माणां, प्रगाढा यत्र बेदना ॥२१॥ अम्बयाधः---हे इन्द्रभूति ! थे बोलते हैं, कि (जस्य) जहाँ पर उन (कूर. कम्माणं) क र कर्मों के करने वाले (बालाणं) अज्ञानियों को (पगाढा) प्रगाढ़ ! (वेपणा) वेदना होती है। मैंने (नरए) नरक में (ठाणा) कुम्भी, वैतरणी, आदि । जो स्पान हैं, वे (सुआ) सुने हैं, (च) और (असीलाण) दुराचारियों की (जा) जो (गई) नारकीय गति होती है उसे भी सुना है।
भावार्थ:-हे आय ! नास्तिकजन नकं और स्वर्ग किसी को मी न मान कर खूब पाप करते हैं। जब उन कर्मों का उदय काल निकट आता है तो उनको कुछ असारता मालम होने लगती है । तब ये बोलते हैं कि ग़च है, । हमने तत्त्वों द्वारा सुना है, कि नरक में पापियों के लिए कुम्भिया, वैतरणी नदी आदि स्थान हैं और उन दुष्कमियों की जो नारकीय गति होती है, वहाँ ऋरकर्मी अज्ञानियों को प्रगात वेदना होती है।
मुल:--सब्यं विलविरं गीअं; सव्वं न विडंबिझं 1
सव्वे आभरणा भारा; सव्वे कामा दुहाबहा ॥२२॥
छाया:-सर्व विलपितं गीतं, सर्व नत्यं विम्बितम् ।
सर्वाण्याभरणानि भाराः, सर्वे कामा दुःखावहाः ॥२२॥
अन्वयार्पः-हे इन्द्रभूति ! (सम्बं) सारे गीअं) गीत (लिविझ) विसाप के समान है । (सव्व) सारे (नट्ट) नृत्य (विनि) विडम्बना रूप हैं । (सम्वे) सारे (आहरणा) आमरण (भारा) भार के समान हैं। और (सब्वे) सम्पूर्ण (कामा) काम मोग (दुहाथहा) दुख प्राप्त कराने वाले है।
भावार्थ:-हे गौतम ! सारे गीत विलाप के समान है। सारे नत्य विडम्बना के समान हैं । सारे रत्न जड़ित आमरण मार रूप है। और सम्पुणे : काम भोग जन्म-जन्मांतरों में दुख देने वाले हैं।