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________________ ' ( १५ ) विमुख होकर संसार ने बहुत कुछ खोया है । पर कि वह फिर उसी मार्ग पर चलने की तैयारी हमें यह महावीर के मार्ग से यह प्रसन्नता की बात है में है। ऐसी के पथिकों के सुभीते के लिए उनके हाथ में एक ऐसा प्रदीप दे दिया जाए जिससे वे अन्नान्ति पूर्वक अपने लक्ष्य पर जा पहुँचें । 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' है । कहने की आवश्यकता नहीं कि इस समय उपलब्ध विशाल चाङ्मय से इसका चुनाव किया गया है, पर संक्षिप्तता की ओर भी इसमें पर्याप्त ध्यान रखा है । बस, वही प्रदीप यह भगवान महावीर के अध्यात्म प्रधानता - यह ठीक है कि भगवान महावीर ने आध्यात्मिकता में हो. जगत्- कल्याण को देखा हैं और उनके उपदेशों को पढ़ने से स्पष्ट ही ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उनमें कूट-कूट कर आध्यात्मिकता मरी हुई है । उनके उपदेशों का एक-एक शब्द हमारे कानों में आध्यात्मिकता की भावना उत्पन्न करता है । संसार के भोगोपभोगों को वहाँ कोई स्थान प्राप्त नहीं है । आत्मा एक स्वतंत्र ही वस्तु है और इसीलिए उसके वास्तविक सुख और संवेदन आदि धर्म भी स्वतंत्र है-परानपेक्ष हैं। अतएव जो सुख किसी बाह्य वस्तु पर अबलम्बित नहीं है, जिस ज्ञान के लिए पौद्गलिक इन्द्रिय आदि साधनों की आवश्यकता नहीं है, वही आत्मा का सच्चा सुख है, वही सस्वा स्वाभाविक ज्ञान है। वह सुख-संवेदन, किस प्रकार, किन-किन उपायों से, किसे और कब प्राप्त हो सकता है ? यही भगवान महावीर के वाङ्मय का मुख्य प्रतिपाद्य है । अतएव इनकी व्याख्या करने में हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों की व्याख्या हो जाती है और उनके आधार पर नैतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि समस्त विषयों पर प्रकाश पड़ता है । इमे साष्ट्र करके उदाहरणपुर्वक समझाने के लिए विस्तृत विवेचन की आवश्यकता है, और हमें यहां प्रस्तावना की सीमा से आगे नहीं बढ़ना है। पाठक 'निन्थ-प्रवचन' में यत्र तत्र इन विषयों को साधारण झलक भी देख सकेंगे । P मिनं न्य-प्रवचन विषय दिग्वर्शन 'निसंस्थ प्रवचन' अठारह अध्यायों में समाप्त हुआ है। इन अध्यायों में विभिन्न विषयों पर मनोहर, आन्तराला दजनक और शान्ति प्रदायिनी सूक्तियां संगृहीत हैं। सुगमता से समझने के लिए यहाँ इन मध्यायों में वर्णित वस्तु का सामान्य परिचय करा देना आवश्यक है, और वह इस प्रकार है :
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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