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________________ धर्म-निरूपण भावार्थ:-हे गौतम ! सूर्य अस्त होने के पश्चात् जब तक फिर पूर्व दिशा में सूर्य उदय न हो जावे उसके बीच के समय में गृहस्थ सब तरह के पेय अपेय पदार्थों को खाने-पीने की मन से भी कभी इच्छा न करे । भूल:-जायरूवं जहामठ्ठ, निद्धतमलपावगं । __ रागदोसभयातीतं, तं वयं बूम माहणं ॥१५॥ छायाः-जातरूप यथा मृष्टं निध्मातमलपापकम् । रागद्वेष भयातीतं, तं वयम् बूमो ब्राह्मणम् ।।१५।। __ अग्बयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (जहा) जैसे (मट्ठ) कसौटी पर कसा हुआ और (निद्धतमलपावगं) अग्नि से नष्ट किया है मल को जिस के ऐसा (जायहर्ष) सुवर्ण गुण युक्त होता है। वैसे ही जो (रागदोसमयातीतं) राग, देष और भय से रहित हो (तं) उसको (वयं) हम (माहणं) ब्राह्मण (बूम) कहते हैं। भावार्थ:-हे गौतम ! जिस प्रकार कसौटी पर कसा हुआ एवं अग्नि के ताप से दूर हो गया है मैल जिसका ऐसा सुवर्ण ही वास्तव में सुवर्ण होता है। इसी तरह निर्मोह और पान्ति रूप कसौटी पर कसा हुआ तथा ज्ञान रूप अग्नि से जिसका 'राग द्वेष रूप मैल दूर हो गया हो उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं। मूल:-तवस्सियं किसं दंतं, अवचियमंससोणियं । सुब्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं ॥१६।। छाया:-तपस्विनं कृशं दान्तं. अपचितमांस शोणितम् । सुव्रतं प्राप्त निर्वाणं, तं वयम् अ॒मो ब्राह्मणम् ॥१६॥ अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! जो (तस्सिय) तपस्या करने वाला हो, जिससे वह (किसं) दुर्बल हो रहा हो (दंत) इन्द्रियों को दमन करने वाला हो, जिससे (अचियमंससोणिज) सूख गया है मांस और खून जिसका, (सुग्घयं) व्रत नियम सुन्दर पालता हो (पत्तनिवाणं) जो तृष्णारहित हो (तं) उसको (वयं) हम (माहणं) ब्राह्मण (बूम) कहते हैं ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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