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प्रस्तावना "मूलाचार प्रदीप" प्रम्य के बारह अधिकारों का संक्षिप्त सारात्मक अथवा विशिष्ट अंश :
प्राचार्य सकलकोति नै १२ अधिकारों में मुनियों के मूलगुण एवं उत्तरगुणों का बहुत सुबोध एवं रहस्यात्मक वर्णन किया।
__ प्रथम ही प्राचार्य श्री ने ३८ श्लोकों में नमस्कार रूप मंगलाचरण किया। मापने मंगलाचरण में पंच परमेष्ठो के गुणों का क्रमिक एवं बहुत सुन्दर ढंग से वर्णन किया। पाठक गरा स्वयं अनुभव करेंगे कि इसी प्रकार से अरहन्तादिक के गुणों का स्मरण करें तो चित्त की एकाग्रता के साथसाथ ध्यान की सिद्धि भी हो सकती है। पुनः आचार्य महोदय ने शास्त्र रचना की प्रतिज्ञा करते हुए २८ मूल गुणों का बहुत हो सरल भाषा में वर्णन किया है।
महिला महावत-(१) २६४ गापामों में आचार्य श्री ने अहिंसा महायत के पालन हेतु जीवों को काय, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, कुल, योनियों को समझने की प्रेरणा दी है । (२) पंच स्थावरों का स्वरूप निर्देश करते हुए प्राणियों को पृथ्वीमायादि के अस्तित्व का श्रद्धान करने की प्रेरणा दी है। (३) इन जीवों के अस्तित्व का श्रद्धान नहीं करने वाले जीवों को. दीर्घ संसारी, पापी, मिथ्यावृष्टि, कुमार्गगामी, संसार में डूबने वाला, जिन धर्म से बाहर आदि शब्दों के द्वारा तिरस्कृत किया है । (४) आचार्यों ने जिनलिंगधारी मुनिराज को, पृथ्वीकायादिक जीवों की रक्षा के लिये निम्न बातों का निर्देश किया है
(म) पृथ्वीकायादिक की विराधना से विरत मुनिराज अपने हाथ-पैर की अंगुली से, खपरादि से पृथ्वी को नहीं बोदते ।
(ब) शौचादिक कार्यों में भी त्रियोग से जलकायिक जीवों की हिंसा नहीं करते।
(स) शरीर में शीत ज्वर आदि के उत्पन्न होने पर भी ज्वाला, अंगार, अग्नि को शिखा मादि तेजफायिक युक्त अग्नि को कभी काम में नहीं लेते ।
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