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________________ मूलाचार प्रदीप ] [ द्वादश अधिकार मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति किसको होती है ? यथा यथामुनीन्द्राण जायते कर्मनिर्जरा । सथातथा च मुक्तिस्त्रीमुदायातिस्वयंवरा ॥३०६६।। ध्यानयोगेनभव्यानां समस्तकर्मनिर्जरा । यदातदेव जायेत मोक्षलक्ष्मी गुणःसमम् ।।३१००।। अर्थ-मुनियों के जैसी-जैसी कर्मों को निर्जरा होती जाती है वैसे ही वैसे स्वयं वरण करनेवाली मुक्तिस्त्री प्रसन्न होकर उसके समीप पाती जाती है । जिस समय भव्य जीवों के ध्यान के निमिस से समस्त कर्मों की निर्जरा हो जाती है, उसी समय अनंत गुणों के साथ-साथ मोक्षलक्ष्मी प्राप्त हो जाती है ॥३०६६-३१००। संवर पूर्वक निर्जरा करने की प्रेरणामत्वेसिनिर्जरा नित्यं कतव्यामुक्तयेजुधः । लपोयोगैः समाचारः सवसिंवरपूर्षिका ।।३१०१।। अर्थ- यही समझकर बुद्धिमानों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये तपश्चरण ध्यान पर सदाचार बारा वारा पूर्वक पूर्व कर्मों को निर्जरा सवा करते रहना चाहिये ॥३१०१॥ नोक अनुप्रेक्षा का स्वरूपअधोवेश्रासनाकारो मध्येस्थाझल्लरीसमः । मृदंगसदृशश्चाने सोकस्येतित्रिधास्थितिः ॥३१०२।। पापिनः पापपाकेनपज्यन्तेखेदनादिभिः । सप्तश्व वषोभागे नारका: नरकेसदा: ।।३१०३॥ पुण्येनपुण्यवन्तोस्यो भागेसुखमुल्वरणम् । कल्पकल्पातविष्वेषुभअन्तिस्त्रीमहद्धिभिः ।।३१०४॥ क्वचिरसौख्यं क्वचिद्दलं मध्येलोके स्वविश्यम् । प्राप्नुवन्तिन्तियंचपुण्यपापवशीकृताः ।। लोकाशाश्यतं धाम मनुष्यक्षेत्रसम्मिलम् । सिद्धा यालभन्तेहो प्रमन्तं सुखमात्ममम् ।।३१०६।। अर्थ- यह सोकाकाश नीचे येनासन के ( स्टूल के ) आकार है, मध्य में झल्लरी के आकार है और ऊपर मृदंग ( परवावज ) के आकार है। इसप्रकार यह लोक तीन भागों में बटा हुआ है । इस लोक के अधो भागमें सातों नरकों में महापापी नारको अपने पापकर्म के उदयसे छेदन भेवन आदि के द्वारा महा दुःख भोगा करते हैं। इसी प्रकार इस लोक के ऊपर के भाग में कल्पवासी देवों में अनेक पुण्यवान देव अपने पुण्य कर्म के उदय से देवांगना और महा ऋद्धियों के द्वारा उत्कृष्ट सुख भोगा करते हैं तथा कल्पातीत देवों में महा ऋद्धियों के द्वारा अत्यन्त उत्कृष्ट सुख भोगा करते हैं। इसी प्रकार मध्य लोक में पुण्य पाप के वशीभूत हुए मनुष्य और तिर्यच कहीं सुख भोगते हैं, कहीं वुःख भोगते हैं और कहीं सुख दुःख दोनों भोगते हैं । इस लोक के
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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