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________________ मूलाचार प्रदीप { ४४३ ) [एकादश अधिकार तथाहमिन्द्र देवेन्द्रनागेन्नाधिपवानि च । प्राप्यामुन्नश्रयन्ते ते पूजास्तुतिशतानि च ।।२८८१।। अर्थ-जो पुरुष इन उसम गुणों को धारण करते हैं, उनका इस लोकमें यश फैलता है, लोग पद-पचपर उनका आदर सत्कार करते हैं, उनकी पूजा करते हैं, उनको नमस्कार करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं । तथा इसीप्रकार परलोकमें भी अहमिद्र, देवेन्द्र, नागेन्द्र आदि के उसम उत्तम पद उनको प्राप्त होते हैं और वहांपर भी सैकड़ों बार उनकी पूजा होती है और सैकड़ों बार उनको स्तुति होती है ।।२८८०-२८८१।। कोन जगत में पूज्य है और कौन अपूज्य हैगुणाःसर्वत्रपूज्यन्तेदक्षःसत्पुरुषाश्रिताः । निर्गुणा मच लोकेस्मिन् सस्कुलादियुतानपि । २८८२।। अर्थ-सत्पुरुषों के प्राधित रहनेवाले गुण विद्वान पुरुषों के द्वारा सर्वत्र पूजे जाते हैं और जो पुरुष निर्गुण होते हैं ते चाहे कितने हो अच्छे कुल में उत्पन्न क्यों न हुए हों तथापि उनकी पूजा कोई नहीं करता ॥२८८२॥ मर जानेपर भी कौन सदा जीवित एवं कौन जीवित रहने पर भी मरे के समान है ? इहामुत्र च जीवन्तिजीवन्तो वा मताः स्फुटम् । गुरिणतोगुरिंगसंयोगाजगद्विख्यातकीर्तितः ॥८॥ जीवन्तोपिमसाज्ञेया मिर्गन्धकुसुमोपमाः। दृक्तपोशानवृत्तादिगुणहीनाः कुकीर्तितः ॥२४॥ अर्थ---गुणी पुरुष उन गुणों के निमित से तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो जाते हैं और तीनों लोकों में उनको कीति फैल जाती है । इसलिये वे इस लोक में भी जीते हैं और परलोक में भी जीते हैं । वे मर जानेपर भी सदा जीवित ही रहते हैं । जो पुरुष सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकमारित्र, सप नादि गुणों से रहित हैं, उनकी अपकीति चारों ओर फैल जाती है इसलिये वे जीवित रहते हुए भी सुगंध रहित पुष्प के समान मरे हुए के समान समझे जाते हैं ॥२८८३-२८५४॥ सम्यग्दर्शन आदि गुणों की प्राप्ति की प्रेरणामत्वेति धौषनानित्यं पालयन्तगुणोत्तमान् । गुणिनां पदससिद्धय गाधान्यस्मतोभुवि ।२६८५॥ ____अर्थ-यही समझकर बुद्धिमान पुरुषोंको गुणियों का पद प्राप्त करने के लिये सम्यग्दर्शन प्रादि उत्तम गुणों को प्रतिदिन प्रयत्न पूर्वक पालन करते रहना चाहिये । ॥२८१५॥ दश प्रकार के धर्मों का स्वरूप एवं नामों का निर्देशअथधर्म प्रवक्ष्यामि वंशभेदं सुखाम्बुषिम् । सामान्मुक्तिपरोंगन्तु पाषेयपपि योगिनाम् ॥२८८६॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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