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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( ४१७ ) [ दशम अधिकार अर्थ --- जो साधु कुमार्ग का उपदेश देता है, जिनमार्गका नाश करता है, श्रेष्ठ मोक्षमार्ग से सदा विपरीत रहता है, जो सम्यग्दर्शन से रहित है, कुमार्गगामी है, जो मिथ्यात्व मायाचारी आवि तीव्रमोह से मोहित है, जो तीव्रमोह के कारण अत्यंत दुःखी है वे स्वच्छन्द देवों में उत्पन्न होते हैं। देवों की स्वभंड नामकी नीच जाति में स्वमोह वाश्वमोह ( कुत्ते के समान इधर-उधर स्वच्छंद फिरने वाले ) देव होते हैं ।।२७०६२७१०॥ बम्बावरीष जाति में एवं असुरकुमारों में कैसे कर्म वाले साधु उत्पन्न होते हैंक्षुद्रः क्रोषी लोमानीमायावी दुर्जमोयतिः । युक्तोनु बद्ध में रेत पश्चारित्रक मंत्र ।।२७११ ।। संक्लिष्टसनिदानो यः उत्पद्यतेऽघकर्मणा । रौद्रासुरकुमारेलोस्वरादि कुतिषु ।। २७१२ ।। अर्थ- जो साधु क्षुत्र हैं, क्रोधी हैं, दुष्ट हैं, अभिमानी हैं, मायाचारी हैं, दुर्जन हैं, जो पहले जन्म के बा इसी भव के पहले वैरभावों को धारण करते हैं जो तपश्चरण और चारित्र की क्रियाओं में संक्लेशता धारण करते हैं और जो निदान करते रहते हैं पापरूप कर्मों के कारण अंबावरीष जाति के नीच और रौद्र असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं ।।२७११-२७१२ ।। रत्नत्रय की प्राप्ति कैसे साधु को दुर्लभ हैमिथ्यादर्शनरता मे सनिदानाः कुमागंगा । कृष्णले श्योद्धतारोद्रपरि लामागुरातिगः ।।२७१३ ।। रक्षा सद्दर्शनंसंपलेश्यान्मृयन्तेसमाधिना । ससारे भ्रमतां तेषां बोधिश्वातीबदुलभा ।। २७१४।। अर्थ- जो जीब मिध्यावर्शन में लीन रहते हैं, जो सदा निदान करते रहते हैं जो कुमार्गगामी हैं, कृष्णलेश्या की धारण करने के कारण जो अत्यन्त उद्धत रहते हैं, जो रौद्र परिणामों को धारण करते हैं और गुणों से सर्वथा दूर रहते हैं, ऐसे जो जीव सम्यग्दर्शन को छोड़कर बिना समाधि के संक्लेश परिणामों से मरते वे जीव सदा इस संसार में परिभ्रमण किया करते हैं। उनको रत्नत्रय की प्राप्ति होना अत्यन्त दुर्लभ हो जाती है ।। २७१३-२७१४ ।। रत्नत्रय की प्राप्ति दूसरे भव में भी कैसे जीवों को 'सुलभ हैसम्यग्दर्शनसम्पन्ना श्रभिधानाः शुभाशयाः । शुक्ललेश्या: शुभध्यानरताः सिद्धान्तवेदिनः ।। १५ ।। धर्मध्यामादिभ्यासूयन्तेसमाधिना । तेषामासप्रभव्यानां सुलभावोषितमा ॥२७१६।। अर्थ- जो सम्यग्दर्शन से सुशोभित हैं, कभी निदान नहीं करते, जिनका हृदय
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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