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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( ३७५ ) [ अष्ठम अधिकार के दिन छहों रसों का त्याग कर अथवा पांचों रसों का त्याग कर आहार लेते हैं प्रथवा गर्म जल से धोये हुए अन्नको ही वे ग्रहण करते हैं। वे निर्भय मुनिराज स्त्रियों के संसगं से प्रत्यन्त दूर तथा हड्डी मांस वा क्रूर जीवों से भरे हुए श्मशान में वा भयानक वनमें अर्थात् एकांत स्थान में ही शयन वा आसन ग्रहण करते हैं ।। २४५१-२४५२ ।। शीतकाल में चौराहे पर खड़े होकर ध्यान करते हैं हेमन्ते चत्वरे घोरे शीतवन्ध मे निशि । ध्यानोष्मणाष्टदिग्वस्त्राः शीतवाषां जयन्ति ते ।।४३। अर्थ- वे मुनिराज जिसकी ठंडसे वृक्ष भी जल जाते हैं, ऐसे जाड़े के दिनों में रात के समय आठों दिशारूपी वस्त्रों को धारण कर तथा ध्यानरूपी गर्मी से तपते हुए घोर चौराहे पर खड़े होकर शीतबाधा को जीतते हैं ।। २४५३ ।। कालमें पर्वत के शिखर पर ध्यान करते हैं सूर्यांशु संत तु गाविस्मशिलासले | तापक्लेशासहाधी रास्तिष्ठन्सिभानुसम्मुखाः ।। २४५४ ।। अर्थ- गर्मी के क्लेश को सहन करने में प्रत्यन्त घोर वीर ने मुनिराज गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणों से तप्तायमान ऐसे ऊंचे पर्वतों को शिलापर सूर्य के सामने खड़े होते हैं ।। २४५४। वर्षा काल में वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उपद्रव सहते हैं किरेवृक्षमूले सपविचेष्टिले । प्रावृटकालेस्थिताः शक्त्याभयन्त्युपद्रवान् बहून् ।। २४५५ ।। अर्थ- वे मुनिराज वर्षा के दिनों में जहां पर बहुत देर तक पानी की बूंदें भरती रहती हैं और जिसकी जड़ में अनेक सर्पादिक जीव लिपटे हुए हैं ऐसे वृक्षों के नीचे खड़े रहते हैं तथा यहांपर अपनी शक्ति के अनुसार अनेक उपद्रवों को सहन करते रहते हैं ।। २४५५ ।। तीनों कालों में योग धारण करते हुए उपसर्ग एवं परीषदों को सहन करते हैं-एवं त्रिकालयोगस्या ऋतुजोषवान्परान् । क्षुत्तृशीतोष्णदेशाहि वृश्चिकादिपषाम् ।।५६ ।। देवग्निरानीत्योपसर्गसंयान् । सहन्ते सर्वशक्त्या व मनाक क्लेशं व्रजन्ति न ।। २४५७ ।। अर्थ - इसप्रकार तीनों ऋतुओं में योग धारण करनेवाले वे मुनिराज ऋतुझों से उत्पन्न हुए अनेक उपद्रवों को सहन करते हैं, क्षुधा, तृष्णा, शीत, उष्ण को परोषह सहन करते हैं, सांप, बिच्छुओं के काटने की परीषह सहन करते है देव मनुष्य तिच और अचेतनों से उत्पन्न हुए घोर दुर्जय उपसर्गों को सहन करते हैं। वे मुनिराज अपनी
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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