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________________ मलाचार प्रदीप] ( ३३२ ) [ सप्तम अधिकार प्राधारांगभयानाच्छमणाभवहानये । समाचारो जिनः सोऽत्र प्रोक्तः पविभागकः ॥२१६४।। अर्थ-मुनिलोग अपने संसारको नाश करने के लिये सूर्योदय से लेकर समस्त दिन और रात में आचारांग सूत्र के अनुसार जो यत्नपूर्वक समस्त नियमों का पालन करते हैं उसको भगवान जिनेन्द्रदेव पविभागिक नामका समाचार कहते हैं ।।२१६३२१६४॥ पुनः इच्छाकार समाचार का स्वहन निर्देशपुनयेप्रोदिताःपूर्वमिच्छाकारादयो वश । संक्षेपाद्विस्तरेणात्र वक्ष्ये तेषांसुलक्षण । २१६५ । ___ संयमझानधर्मोपकरणादिकयाचने । मातापनादियोगनामहणेतपसां सताम् ।।२१६६।। करणेपठनंगानां सर्वत्रशुभकर्मणि । इच्छाकारश्च कर्तव्यः परिणामोमुमुक्षुभिः ।।२१६७।। अर्थ--ऊपर औधिक समाचार के जो संक्षेप से दश भेद बतलाये हैं अब प्रागे विस्तार के साथ उन्हीं का लक्षण कहते हैं । संयमोपकरण, ज्ञानोपकरण वा धर्मोपकरण की याचना करते समय आतापन प्रादि योगों को ग्रहण करते समय, किसी तपश्चरण को ग्रहण करते समय, अंगों का पठन-पाठन करते समय वा अन्य समस्त शुभ कार्यों में मोक्षको हमला करनेवाले मनिकों को मापने काम गप पनिणराष्ट्र रखने चाहिये । ॥२१६५-२१६७॥ मिथ्याकार समाचार का स्वरूपप्रतीचारे व्रतावीनां जालेंगवाक्यमानसः । अशुभेचप्रमावाक्षरेतम्मेवुष्कृसंकृतम् ।।२१६८ । मिथ्यास्तुनिष्फलंसकरिष्यजातुनेदृशम् । त्रिशुद्धयत्यपराधयामण्याकारः सतांमतः ॥२१६६।। ___ अर्थ-अशुभ मन-वचन-कायसे, प्रमादसे वा इन्द्रियों से प्रतादिकों में अतिचार लग जाय तो यह मैंने बुरा किया था पाप किया यह सब मिथ्या हो, निष्फल हो, अब मैं ऐसा पाप कभी नहीं करूगा । इसप्रकार मन-वचन-कायको शुद्धता पूर्वक अपराधका पश्चात्ताप करना सज्जनों के द्वारा मिथ्याकार कहलाता है ॥२१६८-२१६६।। तथाकार का स्वरूपसिद्धांतादिमहानां श्रवणेचोपदेशने । गुरुणाक्रियमाणेवितयविपितम् ।।२१७०।। भवद्भिः सकलाय तदेवमेव न घाग्यथा। इत्युक्त्वा प्रवणतेवोयत्तयाकार एव सः ।।२१७१।। अर्थ-सिद्धांत आदि महा शास्त्रों के अर्थ सुनने पर अथवा गुरु के यथार्थ उपदेश देनेपर यह कहना कि "आपने जो कहा है सो सब यथार्थ कहा है वह अन्यथा
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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