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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( ३२३ ) [ प अधिकार प्रकार यह कर्ममलसे कलंकित हुआ आत्मा तपश्चरण रूपी श्रग्निसे बहुत शीघ्र शुद्ध हो जाता है । जिसप्रकार मलिन वस्त्र पानी से धोनेपर निर्मल हो जाते हैं उसीप्रकार योगी पुरुष भी तपश्चरण रूपी स्वच्छ जलसे अत्यंत निर्मल हो जाते हैं । इस तपश्चरण रूपी श्रौषधि से जन्म-मरण - बुढ़ापा श्रादि समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, पंचेन्द्रिय रूपी शत्रु नष्ट हो जाते हैं और समस्त पापों की राशि नष्ट हो जाती है । जो मोक्षगामी पुरुष चारों ज्ञानों को धारण करनेवाले हैं और समस्त इन्द्र जिनकी पूजा करते हैं ऐसे योगी ges प्रपनी शक्तिको प्रगट कर सदा उत्कृष्ट तपश्चरण करते हैं ।। २१०१-२१०४॥ तीर्थंकरादि के तपों का वर्णन- श्रादिदोषोऽपि पासवान् मुविं । अन्येरपि जिनाधीशैः सर्वैः कृतं तपो महत् ।।२१०५ ॥ arrage कृत्वा वर्षेकप्रोषधानुपररन् । व्युत्सर्गस्यः सुयोगेन केवलज्ञानमापभोः ।।२१०६ ।। इत्याध्याः प्रवशः सर्वे पुराणपुरुषा श्रहो । बलाद्यन्ये तपः कृत्वा घोरं मुक्तिपर्ववयुः ।।२१०७ ।। अर्थ --- देखो भगवान वृषभदेव ने एक वर्षके बाद पारणा किया था । तथा अन्य समस्त तीर्थंकरों ने सर्वोत्कृष्ट तपश्चरण किया था । अत्यंत धोरवोर बाहुबलि ने भी एक वर्षका उत्कृष्ट उपवास किया था तथा श्रेष्ठ योग धारण कर कायोत्सगं से विराजमान होकर केवलज्ञान प्राप्त किया था। इसप्रकार समस्त श्रेष्ठ महापुरुष अपनी शक्ति के अनुसार घोर तपश्चरण करके ही मोक्ष पद में जा विराजमान हुए हैं। ॥२१०५-२१०७॥ तप से ही जीव तीनों काल में सिद्ध हुए हैं--- या याति च पास्यन्ति मुसि पेत्र मुमुक्षवः । कर्माशम् केवलं हत्मातपोभिस्ते न चान्यथा ॥ ८ ॥ अर्थ --- मोक्षकी इच्छा करनेवाले जो पुरुष आज तक मोक्ष गये हैं, अब जा रहे हैं वा आगे जायेंगे वे सभ तपश्चरण से ही कर्मरूप शत्रुओं को नाश कर मोक्ष गये हैं या जायेंगे। बिन्दा तपके न तो कोई मोक्ष गया है और न कभी जा सकता है । ।।२१०६ ॥ तप का महात्म्य - मुक्तिमार्गे प्रवृत्तानां त्रिरत्न श्रीयुतात्मनाम् । विघटन्ते क्षौराखास्तपः सुभटताहिताः ।।२१०६ ।। सहायकृत्य यो धीमान् तपःसुभटमूजितम् । व्रजेन्स क्तिपपेक्षाचं विध्यं तस्य न जातुचित् ।। १०: तपोलंकारि नूनमस्यासता शिवात्मजा । क्षरणोत्यत्र न संदेहः का वार्ता शक्रयोषिताम् ।।११।। अहमिन्द्रपर्व पूज्यं देवराजपदं महत् । चकनाथपदं चाभ्यदूलदेवादिसत्पदम् ।।२११२ ।।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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