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________________ I (२७) [ षष्ठम अधिकार Ji अर्थ-मुनियों को कल्याणकारी प्राण त्याग कर देना अच्छा परन्तु चारित्र में शिथिलता धारण करना किचित् भी योग्य नहीं है क्योंकि चारित्र में शिथिलता कर निवीय है । जिसप्रकार श्रेष्ठ चाप को धारण करनेवाला योगी इस लोक में भी समस्त लोमों के द्वारा वंदनीय पूज्य स्तुति करने योग्य और सात्यमाना जाता है उसी प्रकार वह परलोक में भी तोनों लोकों में मान्य, पूज्यं, वंदनीय माना जाता है ।।१७७७-१७७८ ।। 4. शिथिल चारित्र: उच्च लोकनें दुःख का कार मूलाचारखदीप'] 110 20 P Pan, cir । विश्वमाननीयःः स्यातामुत्र च सः ।।१७७६।। 'चरित्रविलीयभिद्यो अजिसप्रकार शिथिल चारित्र को धारण करनेवाला मुनि इस लोक में भी पद-पद पर निदमीय 'माना जाता है तथा सब द्वारा श्रयममित होता है उसी प्रकारक परलोक में दुर्गतियों में पड़कर निवनीय और अपमानित होता है। १७७६ प्राण जानेपर भी चारित्रं मर्लिन नहीं करें a 'पारिवार की महिम Ja 7 E • चरित्रे निमले महत ) मला मजेत प्रातानयि विमुक्तयें ॥१७८ अर्थ — यही समझकर बुद्धिमान पुरुषोंको मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्राणों त्याग का समय थाने पर भी अपने निर्मल और सर्वोत्कृष्ट चारित्रकों कभी मलिन नहीं करना चाहिये ॥१७८ 34. 274 1: 512 Fi ...... तालमुनि " संसाराम्बुषितारकोति विमलोविश्वामिः तवं चरित्राचार इहो जिसमे मासे किं । Fip अर्थ - यह चारित्राचार को हरण करनेवाला हुआ है अनेक है, स्वर्गमोक्ष के सुख देनेवाला है, भगवान मुनिगरण प्रतिदिन: इसका सेवन करते हैं, यह संसाररूपी समुह, सपार करनेवाला है, अयं निर्मल है, सब में, मुखर है और सर्वोत्कृष्ट है। ऐसा यह पूर्ण चारित्राचार मेरे मनमें विराजमान रहो ।।१७८१६ । २. सपाचार के कथन की प्रतिज्ञा.... चारित्राचार एवोत्र वशितो हि महात्मनाम् । इतकष्वं प्रवक्ष्यामि तप प्राचारम तम् ॥ ६२ ॥ इसप्रकार महात्माओं के इस वारिवाधारका वर्णन किया । जब असे :1 ... 15 8
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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