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________________ लाचार प्रदीप ] ( २४३ ) सचं सुरग्निशन शुभानि च । उच्त्रमिमाज्ञेया द्विचत्वारिशदेव हि ।। २७॥ पुण्यप्रकृतयोर्थपदा विसुखशानयः । शप्रकृतयः शेषा विश्वदुःखनिबंधनाः ॥२८॥ [ पंचम अधिकार अर्थ- मनुष्यों को मन-वचन-कायकी शुभ क्रियाओं से पुण्य उत्पन्न होता है और अशुभ क्रियाओंसे प्रतिदिन दुःख वेनेवाला अत्यंत पाप उत्पन्न होता है । साता वेदनीय, देवायु, तिचायु, मनुष्यायु, मनुष्यगति, बेवगति, पंचेन्द्रिय जाति, पांचों शरीर, सोनों 'गोपांग, समचतुरख संस्थान, बावृषभनाराच संहनन, प्रशस्त वर्ण रस गंध स्पर्श, मनुष्यगति प्रयोग्या देवगति पहात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, श्रस, बावर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति निर्मारण, तीर्थंकर ऊंच गोत्र ये कर्मों को व्यालीम प्रकृतियां शुभ कहलाती हैं तथा इन्हीं को पुण्य कहते हैं ये पुण्य प्रकृतियां तीर्थंकराविक पदों के सुख देनेवाली हैं। इनके सिवाय जो कर्म प्रकृतियां हैं, ये सब पाप प्रकृतियां कहलाती हैं और समस्त दुःखों को देनेवाली हैं ।।२६-२८ ।। पुण्य पाप सहित सात तत्त्व ही नौ पदार्थ है प्रागुक्तसप्ततत्त्वानि पुण्यपापयुतानि व पदार्था नव कथ्यन्तेसम्यग्ज्ञानगोचराः ||२६|| अर्थ --- पहले कहे हुए सातों तत्त्व पुण्य पाप के मिलाने से नौ पदार्थ कहनाने । ये नौ पदार्थ सम्यग्दर्शन और सम्यग्जान के गोचर हैं ||२६| सम्यग्दन के आठ अंगों के नाम व उनके पालन की प्रेरणा -- तेषुतरवायेंषु परीयां विधाय च । दृष्टेरंगान्यपी मान्यावेयान्यष्टी विशुद्धये ॥ ३० ॥ निःशंकितं च निःक्रांक्षितांगंनिविचिकित्सितम् । प्रमूढदृष्टिनामांगा पगूहनसंज्ञकम् ॥ ३१ ॥ सुस्थितीकरणं वात्सल्यंप्रभावननामकम् । एतान्यष्टीम हांगानि तुष्टेर्ष्याया दिग्युतः ॥ ३२ ॥ अर्थ-इन तत्व और पवार्थों में परम अद्धा धारण कर इस सम्यग्दर्शन को शुद्ध करने के लिये आगे कहे हुए सम्यग्दर्शन के आठों अंगों का पालन करना चाहिये । निःशंकित, निःकांक्षित, निषिचिकित्सा, अमृवृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण वात्सल्य और प्रभावना ये आठ सम्यग्दर्शन के महा अंग हैं । सम्यग्दृष्टियों को इनका पालन अ करना चाहिये ।।३०-३२ ॥ निःशंकित अंग का स्वरूप -- उक्तन्यपदार्थेषु तीर्थ सकलागमे । निप्रये च गुरोबमॅदयापूर्ण जिनोविते ||३३|
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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