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________________ मूलाचार प्रदीप ( १८० } [ चतुर्थ अधिकार अर्थ-यहां पर प्रत्याख्यान करनेवाला प्रात्मा प्रत्याख्यापक कहलाता है, त्याग करना प्रत्याख्यान हैं और जिसका त्याग किया जाता है उसको प्रत्याख्यातव्य कहते हैं । मागे संक्षेप से इनका स्वरूप कहते हैं ॥१२॥ । प्रत्याख्यान करनेवाले का स्वरूपश्रीगुरो जिनदेवस्याज्ञया चरणपालकः । मूलोत्तर गुणान सर्वामिमली कर्तु मुद्यतः॥१३।। जिनसूत्रानुचारी यो बोषागमन भी तिकृत । तयोऽर्थीमितकामाक्षः स प्रत्याख्यापकोमहान् ।।१४॥ अर्थ-जो मुनि श्री गुरुकी आज्ञासे वा भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञासे चारित्र का पालन करता है, समस्त मूलगुण और उत्तरगुणोंको निर्मल करने को जो सदा उद्यत रहता है, जो जिन शास्त्रों के अनुसार अपनी प्रवृत्ति करता है, जो दोषों के आगमनसे सवा भयभीत रहता है, जो निर्मल तपश्चरण करना चाहता है, जो इन्द्रिय और काम को जीतने वाला है और जो उत्कृष्ट है उसको प्रत्याख्यापक कहते हैं ॥१३-१४।। १.प्रकार के त्याग को प्रत्याख्यान कहते हैं-- प्रशनादिपरित्यागंप्रत्याख्यानमनेकधा । मूलोसर गुणादौ च दशधानागतादि वा ॥१५॥ अर्थ-भोजन पानका त्याग करना प्रत्याख्यान है वह अनेक प्रकार है, अथवा मूलगुण या उत्तरगुणों में अनागत प्रादि जो दश प्रकार का त्याग है उसको भी प्रत्याख्यान कहते हैं ॥१५॥ __उनके १० प्रकार के प्रत्याख्यान के नाम मात्रप्रनागतमतिकांत कोटीसहितसंशकम् । अखंडितं च साकारमनाकारसमाह्वयम् ॥१६॥ परिणामगतं नामा परिशेषाभिषानकम् । तयाध्वगतसंझ च प्रत्यास्थानं सहेतुकम् ।।१७।। अर्थ-अनागत, अतिक्रांत, फोटोसहित, अखंडित, साकार, अनाकार, परिणामगत, परिशेष, अध्यगत और सहेतुक ये दश प्रकार के प्रत्याख्यान हैं ॥१६-१७॥ (१) अनागत प्रत्याख्यान का स्वरूप-(चतुर्दशी शुद्धरूप) कर्तव्यमुपवासावि अतुम्याधिके च यत् 1 क्रियतेत्त्रयोदश्य भावनागसमेवतत् ॥१८॥ मर्य-जो उपवास चतुर्दशीके दिन करता है उसका नियम त्रयोदशी के दिन ही कर लेना अनागत प्रत्याख्यान कहलाता है ॥१॥ (२) अतिक्रांत प्रत्याभ्यान का लक्षणविधेयमुपवासादि चतुर्दश्यादिके च यत् । ततः प्रतिपदादौ लियतेऽतिक्रांतमेवतत् ॥१९॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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