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________________ यूलाचार प्रदीप ] ( १४१ ) [ तृतीय अधिकार अर्थ - चारित्र विनयको धारण करने से केवलज्ञान का कारण और समस्त सुखों को उत्पन्न करनेवाला ऐसा यथाख्यात चारित्र उत्पन्न होता है ॥८६४ ॥ तप विनय का स्वरूप - द्विषद्दतपोयोगश्चरणे च तपस्विषु । भक्तिरागोद्यमः शक्त्या यस्तपः विनयोऽत्र सः || ८६५॥ अर्थ --- बारह प्रकारके तपश्चरण को पालन करने में तथा तपस्वियोंमें शक्तिपूर्वक अनुराग धारण करना तपो विनय कहलाता है ॥६६५|| तप विनय का फल तो विनयेनाहो घोरबोर तपांसि च । घातिकर्मारिहंदृशि योगिनां विश्वसम्पदः ||८६६ || अर्थ - तपो विनय धारण करने से मुनियों के घातिया कर्मों को नाश करने बाले घोर वीर तपश्चररण प्रगट होते हैं और संसार को समस्त संपवाएं प्राप्त होती हैं ।। ६६ ।। $ उपचार विनय का स्वरूप प्रत्यक्षपणाचार्याद्यखिलयोगिनाम् । श्राज्ञादिपालनं चौपचारिको विनयोऽत्र सः ।।८६७ ।। अर्थ-- श्राचार्य आदि समस्त योगियों को प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूपसे आज्ञा का पालन करना श्रौपचारिक विनय है ||६६७॥ उपचार विनय का फल न विनोना संपाद्यन्ते खिलागुणाः । ज्ञानविज्ञान विद्यारमोक्षदा यमिनां पराः ॥ ६६८ ।। अर्थ-मुनियों के इस उपचार विनय से सर्वोत्कृष्ट और मोक्ष देनेवाले ज्ञान विज्ञान विद्या आदि समस्त गुण प्रगट हो जाते हैं ||८६८ || मोक्ष विनय से मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति - मोक्षार्थं विनयं मोक्षाभिधं येप्रकुर्वतेऽस्वहम् । इमं तेषां जगत्लक्ष्म्यासमं मुक्तिप्रनायते ॥ ६६६ ॥ अर्थ – जो पुरुष मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्रतिदिन इस मोक्ष विनय को धारण करते हैं उनको संसार की समस्त विभूतियों के साथ साथ मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त होती है ।।६६६ ॥ मोक्ष fere प्रतिदिन मावश्यक मति विनयं क्षा सर्वप्रयत्नतः । विशुद्धधा प्रत्यहं सारं कुर्वन्तु शिवशर्मणे ||८७०॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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