SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * मूलाचार प्रदीप] ( १३५ ) [ तृतीय अधिकार सूर्य की प्रभा से अंधकार नष्ट होने का दृष्टांतगुणपहरणमात्रेण जिनेन्द्राणां क्षयं भरणात् । यान्ति विनाश्वरोगाद्या यर्थनेन तमांसि भो ।। अर्थ-जिस प्रकार सूर्यको प्रभासे अंधकार सब नष्ट हो जाता है उसीप्रकार भगवान जिनेन्द्रदेव के गुणों को ग्रहण करने से क्षणभर में ही समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं और समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं ॥८२६॥ भगवान के गुरणों में अनुरागादि करना चाहियेजास्वेति यतयो नित्यं सगुणाम जिनेशिनाम् । प्रयत्नेन प्रकुर्वतुरागभक्तिःस्तषादिकान् ।।८३०॥ अर्थ-यही समझकर मुनियों को भगवान प्ररहंतदेव के गुण प्राप्त करने के लिये गड़े मान के हाथ मदान नरहंतमेव के पुरणों में अनुराग, उनकी भक्ति और उनकी स्तुति प्रादि करनी चाहिये ॥३०॥ तीर्थकरों के समस्त गुणों की प्राप्ति होती है-- जिनबरगुणहेतु दोषान य सकलसुलनिधानं नानविज्ञानमूलम् । परविमलगुसाघेस्तद्गुणग्रामसिद्ध्य कुरुत बुधजनानित्यं स्तवं तीर्थभाजाम् ॥३१॥ अर्थ-भगवान तीर्थकर परमदेव का स्तवन उनके गुणोंकी प्राप्ति का कारण है, समस्त दोष और अशुभ ध्यानों को नाश करनेवाला है समस्त सुखों का निधान है और ज्ञान विज्ञानका मूल कारण है । इसलिये बुद्धिमान पुरुषों को तोर्गकरों के समस्त श्रेष्ठ गुणों को सिद्ध करने के लिये उनके निर्मल गुणोंका वर्णन कर उनको स्तुति सदा करते रहना चाहिये ।।८३१॥ वंदना नामक मादण्यक का स्वरूपविश्वेषां तीर्थक रणां निर्देश्येमं स्तवं ततः । हितायस्वान्यग्रोवश्ये वंदना मुक्तिमातृकाम् ॥८३२।। अर्थ-इसप्रकार समस्त तीर्थकरोंकी स्तुति का स्वरूप कहा अब प्रागे अपना और दूसरों का कल्याण करने के लिये मोक्ष की जननी ऐसी बंदना का स्वरूप कहते हैं ।।३२॥ वन्दना आवश्यक का विशेष विवरणएकतीर्थकृतःसिद्धाचार्यपाठकयोगिनाम् । साधूनां च सुनामाण्यानभक्त्याविभिश्च यत् ॥ गुरणग्रामैनमःस्तोत्रं कृतकर्मविधीयते । प्रत्यहं गुणिभिमुंवत्यै वंदनावश्यकहि तत् ॥३४॥ अर्थ- गुरणी पुरष मोक्ष प्राप्त करने के लिये किसी एक लोभकर की सिद्ध,
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy