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________________ मुलाचार प्रदीप] [ द्वितीय अधिकार (३२) हस्तेन ग्रहण नामक अन्तराय-- यद्यापत्ते करेरणामो किचिवस्तु महादसा विशयका एवं प्रसारामा मुनेः ॥५५४।। अर्थ-यदि वे मुनि अपने हाथ से पृथ्वीपर से कोई घस्तु उठा लें तो उनके 'हस्तेनग्रहण' नामका अन्तराय होता है । इसप्रकार मुनियों के प्राहार को निषेध करने वाले ये रत्तोस अन्तराय माने हैं ।।५५४॥ अन्य बहुत अन्तरायों का सामान्य उल्लेख-- अन्येपि बहवः सन्ति भोजमालाभकारिणः । यांगाल स्पर्श सामिक मृत्यादय एव भोः ।।५५५।। अर्थ-इनके सिवाय चांडाल का स्पर्श हो जाना किसी साधर्मों की मृत्यु हो जाना आदि और भी भोजन में बाधा डालने वाले बहुत से अन्तराय हैं ॥५५५।। अन्तरायों में से किसी भी अन्तराय के आने पर भोजन का त्यागएषामन्यतमः कश्चिदंतम्या स्वकर्मणा । यक्षायाति तदाहारम भक्तं त्यजेसमी ॥५५६।। रान अर्थ- अपने कर्मके उदय से इन अन्तरायों में से यदि कोई भी अन्तराय प्रा जाय तो मुनियोंको उसके बाद माहारका त्यागकर देना चाहिये, ग्राधे खाये हुए आहार का भी त्याग कर देना माहिये ।।५५६।। भोजन करके अपने स्थान पर प्रागमनततोसौ संपतो ो नामरतरायान् प्रपालयत् । स्वादु त्वक्त्वा धरों कृत्वा प्रयाति स्वाश्रम द्रुतम् ।। अर्थ-तदनंतर उन मुनियों को इन अन्तरायों का पालन करते हुए स्वादको 4 छोड़कर चर्या करनी चाहिये और चर्या करके शीघ्र ही अपने आश्रम में प्रा जाना चाहिये ।।५५७।। ग्लानि आदि का निषेधन तत्रोपविशे योगी ग्लान्याविकारणं विना। जल्पनं हसनं वा म कुर्याद योषिअनादिभिः ।। ___ अर्थ-मुनियों को वहांपर ग्लानि प्रादि किसी कारण के बिना बैठना नहीं चाहिये । तथा स्त्री या पुरुषों के साथ बात चीत वा हंसी कभी नहीं करनी चाहिये । ॥५५८|| गुरू के समीप चारों प्राहारों का प्रत्याख्यान. किंतु स्वगुष्मासाद्य नत्वा भक्त्या चतुर्षियम् । प्रत्यारल्यानं स गृह्मोपात्स्वशक्रया कमहानये ।।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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