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________________ मूलाचार प्रदीप [द्वितीय अधिकार अर्थ-यदि मार्ग में चलते हुए मुनि के पैर में, विष्ठा लग जाय, या विष्ठा का स्पर्श हो जाय तो उनके (२) 'अभव्य' नामका अन्तराय होता है; यदि मुनि के पापकर्मके उदय से वमन हो जाय तो (३) 'छदि' नामका अंतराय होता है ।।५४०॥ (४) रोधन थ (५) रुधिर अन्तराय का स्वरूपयदि कश्चित् करोत्येव, पमिनो धरणादिकम् । प्रात्मनो वा परस्यासो, रुधिरं यदि पश्यति ।। अर्थ-यदि मार्ग में चलते हुए मुनि को रोक ले तो (४) 'रोधन' नामका अन्तराय होता है । यदि वे मुनि अपने शरीर से निकले हुए अथवा दूसरे के शरीर से निकले हुए रुधिर को देखले तो उनके (५) रुधिर नामक अन्तराय होता है ।।५४१।। (६) अयुगात नामक अन्तराय-- छुःखः शोकादिभिः स्वात्मनोऽश्रयातो भवेद्यादिः । प्रत्यक दः परेषां वा, सन्नाना मरणादिभिः ॥ अर्थ - यदि दुःख वा शोकादिक के द्वारा मुनि के प्रांसू निकल पावें अथवा किसी प्रासन (नजदीकी) पुरुष के मरण हो जाने से रोने वाले दूसरों के नांसुओं को मुनि देख ले तो उनके (६) 'अश्रुपात' नामका अन्तराय होता है ॥५४२।। (७) जाम्वधः परामर्श तथा (4) जानूपरिव्यसि क्रम अन्तराययवि जानोरयो भागे, करोति स्पर्शनं मुनिः। व्यतिमं विधसे च, जानोपरि कारणात् ॥५४३॥ अर्थ-यदि वे मुनि जंघा के नीचे के भाग को स्पर्श करलें तो उनके (७) 'जान्वधः परामर्श' नामका अंतराय होता है । यदि वे मुनि किसी कारणसे जंघाके ऊपर व्यसिक्रम करलें; जंघा से ऊंची सोढ़ी पर इतनी ऊंची एक ही डंडा या सीढ़ी पर चढ़े तो उनके (८) 'जानुपरिन्यतिक्रम' नामका अंतराय होता है ।।५४३।। (E) नाभ्यनो निर्गमन तथा (१०) प्रत्याख्यात सेवन अन्तरायमाभेरधः शिर, कृत्वा, कुर्यानिगममे मतिः । मुनेनियमितस्पेय, वस्तुनो भक्षणं भवेत् ॥५४४॥ अर्थ-यदि मुनि नाभि से नीचे अपना सिर करके निकले तो उनके (६) 'नाम्ययो निर्गमन' अंतराय होता है । यदि वे मुनि त्याग किये हुये पदार्थ को भक्षण करलें तो उनके (१०) 'प्रत्याख्यात सेवन' नामका अंतराय होता है ।।५४४।। (११) जीववध ब (१२) काकादि पिंडहरण अन्तराय-- प्रास्मनः पुरतोऽन्येन, क्रियतेऽगिवयो यदि । काकाद्याः पाणित: पिंज, योगिनोपहरन्ति च ॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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