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________________ स्थापित रूद्ध आदशों के प्रति उसका भयंकर विद्रोह, व्यंग्य, इनकार : और एकान्त आत्मलक्षिता (Subjectivity) की ओर उसका बेरोक अभियान आज की तमाम सर्जन-विधाओं में लाफ़ उजागर है। आज पश्चिम का लेखक, सभ्यता-संस्कृति के सारे जड़ आवरणों को छिन्न-भिन्न कर, सारो लोक-लीकों और पर्यादाओं को तोड़कर, तातोत (IrratioI3AI), आदिम, नग्न, शुद्ध भीतरी मनुष्य की खोज में है। बिना किसी पारिभाषिक 'लेबल के, यही आज पश्चिम के अत्याधुनिक सर्जन की, एक प्रयोगशील नवआध्यात्मिक रुझान है। मैंने तब आन्तरिक नये मनुष्य, नयी सत्ता (New Being) की खोज के लिए, पौराणिक सृजन-माध्यम चुना। क्योंकि समस्या मेरे मन में महत सामयिक और प्रासंगिक नहीं थी, बल्कि सार्वकालिक, चेतनागत और प्रज्ञागत थी। सार्वकालिक मनष्य की रचना मिथकीय पात्र में ही सम्भव है। क्योंकि वह किसी वास्तविक देश या काल-विशेष से मर्यादित नहीं हो सकता है। इती ने ऐसी तलाश के लिए प्रतीकात्मक पात्र-रचना हो अधिक उपयुक्त हो सकती है। प्रतीकात्मक व्यक्तित्वों के सृजन के लिए मिथक हो तबसे शक्तिशाली और प्रभावक साधन सिद्ध हो सकते है। मैंने अपनी अन्तःप्रज्ञा से साहित्यिक सर्जन-शिल्प के इस सर्वाधिक सक्षम माध्यम और रूप-तन्त्र (Form) की अमोघता को गन लिया था। सो मैंने तात्कालिक तमाम बाहरी वर्जनाओं और प्रचलित मान्यताओं को नजरअन्दाज कर दिया और हिम्मत के साथ अपने स्वायत्त 'फ़ॉर्म में ही सृजन-प्रवृत्त हो गया। यह एक दयनीय व्यंग्य है कि अन्तर्मुखता और आध्यात्मिकता के सर्वोपरि केन्द्र भारत का लेखक, आज पौराणिक माध्यम की इस शक्ति से अनभिज्ञ हो गया है। हिन्दी में आज तथाकथित अत्याधुनिकता के दावेदार, अधिकांश कृतिकार और आलोचक, प्रासंगिकता के मोह से इतने अधिक पीड़ित हैं कि पौराणिक कृतित्व को ने आज के सन्दर्भ में आउट-मोडेड और निरर्थक करार दे बैठे हैं। जिस पश्चिम के अन्धानुकरण में, वे प्रासंगिकता का ढोल पीटते हैं, उस पश्चिम के पूर्वगामी और समकालीन लेखकों ने समान रूप से, सदा पौराणिक माध्यम की अचूक सामथ्र्य और शाश्वत गुणवत्ता तथा मूलवत्ता को पहचाना है, और मिथकीय प्रतीकचरित्रों की रचना कर, साहित्य के अमर शिखर उठाये हैं। होमर, वर्जिल, दान्ते, मिल्टन-जैसे प्राचीनों और गोइथे, शिलर आदि रोमानियों को छोड़ भी दें, तब भी हमारे वर्तमान युग में हो टॉपस मान, हेमनि हेस, नीको कजांकाकिस, जेम्सू जॉयस, वर्जीनिया युल्फ़, एझरा पौण्ड, टी. एस, इलियट, रिल्के और यूजीन आयोनेस्को तक ने मिथक, दन्तकथा, फन्तासी और प्रतीक-पात्रों के माध्यमों को सर्वोपरि शक्तिमान सृजन-स्वरूप स्वीकारा है, और उस तरह के रूप-तन्त्रों में उत्कृष्ट रचनाएँ प्रदान की हैं। यह एक 19::
SR No.090287
Book TitleMuktidoot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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