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________________ मन्दिर स्याध्याय आ गया । माँ जी आप गेहूँ बीन रही हैं और आप कह रही हैं कि स्वाध्याय कर रही हूँ। आप झूठ बोलना कब से सीख गयों? __ माता चिरौंजायाई बड़ी विदुषी महिला थीं। अपने समय की बड़ी विदुषी महिला रही हैं । उन्होंने समाज का बड़ा महयोग किया है | अगर धर्ममाता चिरौंजाबाई नहीं होती तो वर्णी जी भी नहीं होते, यह ध्यान रखना | वर्णी जी को बनाने में धर्ममाता चिरौंजाबाई का बहुत बड़ा हाथ है । आप वर्णी जी की “मेरी जीवन गाथा", पढ़िये । उन्होंने अपनी आत्मकथा अपने हार्थो से लिखी | जैनियों की उन्होंने कितनी ठोकरें खायी हैं क्योंकि ये बेचारे जैन कुल में पैदा नहीं हुए थे। उन्होंने जैन धर्म को प्राप्त करने के लिये अपना तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया । तब इतनी विशृद्धि कर पाये और अन्त में दिगम्बर साधु बनकर समाधिमरण को प्राप्त किया | सम्यक् दृष्टि जीवात्मा थी वणी जी की | वर्णी जी भी जैन रामायण, पद्मपुराण सुनकर, पककर जैन बन गये थे। यह है प्रथमानुयोग की महिमा । वर्णी जो कहने लगे माता जी आप झूठ बोलना कब से सीख गयीं धर्ममाता चिरौंजाबाई क्या बोलती है ? बेटा, एक बात बता कि स्वाध्याय करने में किस चीज का ज्ञान होता है? हेय को छोड़ना और उपादेय को ग्रहण करना | स्वाध्याय हमें यही बताता है कि जो गलत है उसे छोड़ो, और जो सही है उसे ग्रहण करो | हम गेहूँ को अपनी तरफ ला रहे हैं और कचरे को बाहर फेंक रहे हैं । इसका नाम ही तो स्वाध्याय है | जो गेहूं उपादंय है, उसको हम अपनी तरफ ला रहे हैं और जो कचरा हेय है उसे हम बाहर की तरफ फेंक रहे हैं। हमारे जीवन की हर चर्या स्वाध्याय हो सकती है। यह मत समझना कि हम घन्टों ग्रन्थ पढ़ते रहें, पन्ना पलटते रहें तो इसका नाम स्वाध्याय हुआ। यदि आपके विवेक में यह जागृति आ जाए कि हमें पानी को दोहरे छन्ने में छानकर पीना है तो जहाँ पर आप छना पानी पी रहे हैं तो वहीं पर भी आप स्वाध्याय कर रहे हैं। क्योंकि आप जिनेन्द्र भगवान की वाणी का परिपालन कर रहे हैं। जिनेन्द्र भगवान ने कहा है कि पानी छानकर पीना चाहिये। यह स्याध्याय है जीता-जागता स्वाध्याय है। यदि आप दिन में भोजन कर रहे हैं तो आप स्वाध्याय कर रहे हैं क्योंकि आप जिनेन्द्र भगवान की वाणी का परिपालन कर रहे हैं। जिनेन्द्र भगवान ने कहा है कि दिन में भोजन करना चाहिये, यह स्वाध्याय है। आप यदि दुकान पर बैठे हैं और ईमानदारी से कमा रहे हैं और आपकी अन्तरात्मा कह रही है कि हमें मिलावट नहीं करनी है, ईमानदारी से इतने प्रतिशत ही लेना है तो वहाँ पर भी बैठकर आप स्वाध्याय कर रहे हैं। स्वाध्याय केवल किताबें पढ़ने से नहीं होता है | स्वाध्याय की घण्टों चर्चा की, घर में जाकर जरा सा नमक कम हुआ तो घरवाली को हजारों गालियाँ सुना डालीं । आचार्य ने इसका नाम
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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