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________________ मन्दिर (४८) जिन बिम्बोपदेश और हमारे काटते ही वे प्राणांत हो गये । लेकिन इस व्यक्ति को काटने से, इसके शरीर से सफेद खून निकला और यह व्यक्ति निश्चल खड़ा है। अवश्य ही कोई महापुरुष है। महावीर ने उसे उपदेश दिया। सर्प ने हिंसा करना छोड़ दिया । कहने का तात्पर्य क्या है? तीर्थकरों के शरीर में जन्म से ही हमारे समान लाल रक्त (खून) नहीं होता, दूध के समान श्वेत रक्त होता है ! वंत रक्त होने का भी अपना एक वैज्ञानिक कारण है, विज्ञान कहता है कि मनुष्य के शरीर में लाल रुधिर कणिकायें एवं श्चत रुधिर कपिणकार्ये पाई जाती है। जिस व्यक्ति का हृदय काम-क्रोध मद-लोभ, विषय कषाय आदि हिंसाजन्य प्रवृत्ति, मांसाहारी भोजन से सहित है, उनमें लाल रुधिर कणिकाओं की मात्रा अधिक पाई जाती है। परन्तु जिनका हृदय प्रेम-करुणा-दया-वात्सल्य, पूजा दान आदि की भावनाओं से भरा होगा, उनके रुधिर में श्वेत कणिकाओं की मात्रा अधिक होती है। अतः जब थोड़ी सी दया, प्रेम, वात्सल्य से रुधिर में श्वेत रुधिर की कणिकायें अधिक बढ़ती है, तब जो सम्पूर्ण विश्व के प्राणियों के प्रति वात्सल्य भावना-प्रेम-करुणा से भरा होगा, उसके समस्त शरीर में सफेद रुधिर हो जाये तो कौन-सा आश्चर्य है? क्योंकि सोलह कारण पूजा में आप पढ़ते हैं- “यात्सल्य अंग सदा जो ध्याचे, सो तीर्थकर पदवी पाये।" तीर्थकर नाम कर्म की प्रकृति बंध कराने में वात्सल्य को प्रमुरा माना है । लोक व्यवहार में भी जब माता का हृदय अपने बच्चे के प्रति प्रेम वात्सल्य से भरा होता है तो उसके स्तन से दूध निकलता है, अन्यथा नहीं । जब थोड़े से वात्सल्य में माता के स्तन में सफेद दृध होता है, तब तीन लोक के जीवों से वात्सल्य रखने वाले के समस्त शरीर में दूध ही दूध हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं ___इस प्रकार वेदी के सामने बाजू में बैठकर या खड़े होकर भगवान की मूर्ति के साथ ही उनके द्वारा प्रतिपादित तत्वों का । जैसे- अहिंसा-संयम-तप आदि के बारे में भी विचार करना चाहिये और भावना करना चाहिये कि हे भगवन्! आप वीतरागी हैं और हम वित्तरागी (धनसम्पदा के लालची) हैं । आपके समान अनुपम स्वरूप की उपलब्धि हमें भी हो । पुनः वंदी की प्रत्येक छोटी बड़ी प्रतिमाओं को एक-एक करके ध्यान से एकटक देखना, कौन से तीर्थंकर की मूर्ति है? पाषाण की है या धातु की पूरी वेदी में कुल कितनी मूर्तियाँ है ? छत्र-चंबर भामण्डल आदि उपकरणों से वेदी किस प्रकार मजी है, बेदी किस ढंग से बनी है आदि-आदि। कई लोग वेदी के सामने खड़े होकर या बैठकर आँखें बन्द तो कर लेते हैं | लेकिन चन्द आँखों में उन्हें क्या दिखता है? आप मंदिर जी में दर्शन करने आये हैं, देखने आये हैं, आँखें बन्द करने नहीं आये हैं। हाँ! प्रारम्भ में मंदिर जी में वेदियों की प्रत्येक मूर्ति के स्वरूप को गौर से देखो, न जाने किस मूर्ति का सूर्यमंत्र आपकी चेतना को छु जाये और आपके अन्दर सम्यक्त्व
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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