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________________ मन्दिर (४२) चिन्हकरण यानि, जहाँ धर्म का ह्रास हो रहा हो, क्रिया नष्ट हो रही हो एवं सुसिद्धान्त यानि जैन सिद्धान्त शास्त्रों के अर्थ का अनर्थ किया जा रहा हो, वहाँ बलात् (जबर्दस्ती) दूसरे के बिना पूछे ही बोलना चाहिए, बतलाना चाहिए कि धर्म, क्रिया एवं सिद्धान्त का यथार्थ स्वरूप यह चन्हकरण इतनी प्रशस्ति पढ़ने के बाद उसी आसन के ठीक बीचोंबीच एक चिन्ह अंकित होता है | जिन तीथंकरों की प्रतिमा होगी, उन पर उन्हीं तीर्थंकरों का कोई एक चिन्ह होता है। अब प्रश्न उठता है कि इन तीर्थंकरों के चिन्ह क्यों होते हैं? इन चिन्हों का तीर्थंकरों के पूर्व भव से क्या कोई सम्बन्ध हो सकता है? जैसे- आदिनाथ का बैल से, पार्श्वनाथ का सर्प से, महावीर का सिंह से इसी प्रकार अन्य तीर्थंकरों के इन चिन्हों का निर्धारण कैसे, कब और कौन करता है? इत्यादि। प्रायः सभी तीर्थंकरों का संस्थान समचतुम्र होने से उनकी पहचान नहीं हो सकती । केवल हुण्डापसर्पिणी काल के कारण आठ तीर्थकर भिन्न रंग के एवं सोलह तीर्थंकर तपे सोने रंग के हुए, अन्यथा हमंशा चौबीसों तपे सोने के रंग के ही होते हैं। अतः तीर्थंकरों की पहचान के लिए चिन्ह होते हैं। इन चिन्हों का तीर्थंकरों के पूर्व भव से कोई सम्बन्ध नहीं है। क्योंकि कई तीर्थंकरों के चिन्ह साधिया, चन्द्रमा, वनदण्ड, कलश आदि हैं, इन चिन्हों में जीव पर्याय का कोई अस्तित्व नहीं होता | ये अचेतन, अजीय हैं। अतः इससे सिद्ध होता है कि इन चिन्हों का उन तीर्थंकरों की पूर्वपर्याय से कोई सम्बन्ध नहीं है। संसार में जितने भी शरीरधारी प्राणी हैं, उन सभी के शरीर में कोई न कोई शुभ या अशुभ चिन्ह होते हैं, यह सामुद्रिक शास्त्र के ज्ञाता पुरुष मानते हैं। जो शुभ चिन्ह होते हैं, शुभ फल देते हैं,अशुभ चिन्ह अशुभ फल देते हैं। ऐसा ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता पुरुष मानते हैं । अतः तीर्थकरों जैसे महापुरुषों के जन्म से ही शरीर में एक हजार आठ शुभ चिन्ह होते हैं। जो चिन्ह उनके दाहिने पैर के अंगूठं में होता है, उस चिन्ह को जन्माभिषेक के समय सुमेरु पर्वत पर सौधर्मेन्द्र द्वारा घोपित किया जाता है। कहा भी है जम्मण काले जस्स टु वाहिण पायम्मि होई जो धिषणा। तं लक्षण पाउत्तं आगम सुत्तेसु जिण देह ।। अतः इस प्रकार सिद्ध है कि तीर्थंकरों के चिन्ह क्यों, कब और कैसे रखे जाते हैं? आज बस इतना ही...... बोलो महायीर भगवान की.......
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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