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________________ मन्दिर (३५) श्रीमत् - पवित्र -मकलंक - मनन्त-कल्पम्, स्वायं भुवं सकल मंगल-मादि तीर्थम् । नित्योत्सवं मणिमयं निलयं जिनानाम्, त्रैलोक्य-भूषण महं शरणं प्रपद्ये ।। जय बोलो १००८ श्री अरहंत परमेष्ठी भगवान की....... शारदे नमस्कार करता हूं बार-बार.... जय बोलो श्री द्वादशांग जिनवाणी माता की....... जय बोलो आचार्य शिरोमणी श्री धर्मसागर जी महाराज की.... जय बोलो अहिंमामयी विश्व धर्म की........ गंधोदक का महत्त्व कल हमने सुना था कि हम मंदिर जी के अन्दर कैसे प्रवेश करें? कैसे सामग्री चढ़ायें ? कैसे नमस्कार करें ? आदि-आदि ....! आज हम चर्चा करेंगे कि नमस्कार करने के बाद आगे क्या, कैसे करना है? नमस्कार करने का बाद प्रायः सभी लोग गन्धोदक लेते हैं। गंधोदक का महत्त्व क्या आपको मालूम है कि गंधोदक कहाँ, कैसे और क्यों लगाते हैं? प्रायः प्रतिदिन की भाँति आँखों, मस्तक, गला आदि पर गंधोदक लगाते हैं। लेकिन गंधोदक लगाते समय निम्न श्लोक में से कोई एक या तीनों अवश्य बोलना चाहिए निर्मलं निर्मली करणं पवित्रं पाप नाशनं । : जिन गन्धोदकं वन्दे, अष्टकर्म विनाशनं । । अथवा निर्मल से निर्मल अति, श्री जिन का अभिषेक । रोग हरे सब सुख करे, काटे कर्म अशेष | अथवा मुक्ति श्री बनिता करोदक मिदं पुण्यां करोत्पादकम् 1 नागेन्द्र त्रिदशेन्द्र चक्र पदवी, राज्याभिषेकोदकम् । ।
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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