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परमागम स्तुति
शारद! शरद - सी शीतल, शुभ चाणो दे दो मुझे, आपके द्वारे हम, भिक्षा लेने आये हैं । ज्ञान का प्रकाश करो, मोहतम नाश करो, कुण्ठ में विराजो मेरे, दीक्षा लेने आये हैं । आपकी चतुर्भुज, चार अनुयोग धरें। ज्ञान-हंस रूप भेद - विज्ञान धारे हैं । ऐसी जिनवाणी मेरी आत्मा सुधार करे, जिनके " अमित" बार चरण पखारे हैं । । ॥
मात जिनवाणी तेरी स्तुति है बार-बार, तार-तार हुई मेरी चुंदरी सम्हार दे! आगम के शब्द - शब्द में, हे मात! दर्श तेरा, वही दर्श आज निज-पूत पे निशार दे! यूँ तो मेरा जीवन ही, वाहन तुम्हारा मात ! प्यार दे ! तिहार दे ! दुलार पुचकार दे! हंसवाहिनी मैं तेरी गोद में पड़ा हुआ हूँ, भाव को सुबोध दे, निखार दे माँ शारदे ! ।।२ ।। शारदे ! नमस्कार, करता हूँ बार-बार, दीजिये समयसार, साथ में नियमसार । ज्ञान का रयणसार, दे दो प्रवचनसार, आत्मा का हो सुधार, करो मन में उजार । परम पदारथ सार, दे दो पंचास्तिकाय, पाऊँ मैं भी बोध ऐसा, रक्षा करूँ षड् निकाय । ज्ञान निधि ऐसी पाऊँ, मन होवे निर्विकार,
से हैं बार-बार ।।३।।
स
“ अमित" नमस्कार