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________________ मन्दिर (२२) मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें? धारा एवं कई प्रकार की शुद्ध मिठाईयाँ बनाकर अनन्त चतुर्दशी को चढ़ायीं । और इस विषय में हम विशेष अधिक क्या कहें? यारह वर्षों में होने वाले जैनला विश्व के गोमटेश्वर बाहुबली का पंचामृत अभिषेक हम सबकी श्रद्धा का केन्द्र होता है जहाँ उत्तर-दक्षिण का भेद मिट जाता है। इससे अधिक सजीय- सटीक प्रमाण और क्या हो सकता है हम सबके लिये। अतः इससे सिद्ध होता है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा मन्दिर जी में चढ़ाने बाली सामग्री में भेद हो सकते हैं। इस प्रकार भगवान के दर्शन के लिये जाते समय कुछ न कुछ अपने साथ सामग्री ले जाते हैं। परन्तु एक प्रश्न उठता है कि भगवान तो वीतरागी हैं, उन्हें इस सामग्री को चढ़ाने से क्या प्रयोजन ? सुनो नीतिकारों ने कहा है कि रिक्त पाणिनैव पश्येत् राजानां देवतां गुरुं । नैमित्तिक विशेषेण फलेन फलमादिशेत् ।। अर्थात् राजा, देवता, गुरु, नैमित्तिक यानि वैद्य, ज्योतिषी के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिये, अर्थात् कुछ न कुछ भेंट लेकर ही जाना चाहिये। क्योंकि फल की प्राप्ति फल से ही होती है। जिस भावना के साथ हम मन्दिर जो जा रहे हैं, उस भावना की सफलता हमारे द्रव्य के साथ निहित है, तभी तो कहा है कि द्रव्यस्य शुद्धि-मधिगम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धि-मधिका-मधिगन्तु कामः । आलंबनानि विविधान्य- वलम्ब्य बल्गन्, भूतार्थ यज्ञ पुरुषस्य करोमि यज्ञं ।। शास्त्रों में पढ़ा होगा, सुना होगा कि प्राचीन समय में लोग जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करते समय हीरा, मोती, पन्ना- माणिक आदि बहुमुल्य जवाहरात चढ़ाया करते थे । दर्शन कथा में मनोरमा ने गजमुक्ता प्रतिदिन चढ़ाकर भगवान के दर्शन करूंगी, तब भोजन करूँगी, ऐसा नियम लिया था और उसका पालन भी परीक्षा देकर किया । धन्य है ऐसी भव्यात्मा को । अतः भगवान के मन्दिर में सोना चाँदी आदि द्रव्य चढ़ाना भी हमारी श्रद्धा-भक्ति का द्योतक है। द्रव्य चढ़ाना हमारे परिणामों को विशुद्ध बनाने में निमित्त है तथा जितने द्रव्य को हम प्रभो चरणों में अर्पण करते हैं, उतना हमारा 'लोभ' का त्याग होता है । द्रव्य सामग्री हाथ में होने से हमें रास्ते में भी मन्दिर जी जाने का, देव दर्शन करने का संकल्प बना रहता है। . अहो देखो !! राजगृष्ठी में भगवान महावीर स्वामी के समवशरण की ओर तिर्यञ्च गति का जीव " मेंढक " अपने मुख्य में कमल पुष्प की पांखुड़ी लेकर जा रहा था, किन्तु अकस्मात् राजा श्रेणिक के हाथी के पैरों के नीचे दबकर मरा, सो समवशरण के दर्शन के शुभ संकल्प से देव पदवी को प्राप्त हुआ। सुना है, गरीव सुदामा जब नारायण श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका 0
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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