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________________ 66] 71.2.11 महाकषि-पुष्पदन्त निरचित महापुराण पत्ता--सा तुज्झु जि जोग्गी लयललियंगी हिप्पइ मड्डइ किंकरहं ।। सुरसरि झसमुद्दहु होइ समुद्दहु गउ जम्मि वि पंकयसरह ।।2।। टयर विष्फुरियाणणु णं पंचाणणु तं णिसुणिवि पडिलब दसाणणु । र करिकरभय खल बलपवल' चवल दसरहस्य । रामसामगयसा मारांम मुहड तुमुल भूगोयर। हरमि परिणि गुणमणिसंचयखणि अहिणवहरिणणयण मयणावणि । पभणइ णारयरिसि कि गावे रावण- विहले वीरपलावें। सरह सीह को दणि संघारइ काल कयंत बे वि को मारह। चंद सूर को खलइ णहंगणि हरि बल को णिहणइ समरंगणि। केसरिकेसछदा को छिप्पइ जाणइ केण पराहिव हिप्पइ । चवइ राउ विरइयअवराहह बालह वाणारसिपुरिणाहह" । सिरकमलई खंडेसमि जइयहूं तुई वि तेत्थु आवेसहि तइयहुं। 10 पत्ता--तेलोक्कभयंकरु' वरिखयंकरु धणुगुणटंकारु जि झुणइ ।। खेयरउरदारणि महुं सरधोरणि रणि रामहु वम्मई लुणछ ।3।। घत्ता-वह स्त्री लता के समान सुन्दरता अंग वाली तुम्हारे योग्य है। अपने चातुर्य से उसे बलपूर्वक किंकरों से छीन लीजिए। क्यों कि गंगा नदी मछलियों से भरे समुद्र की होती है, बह जन्म भर तलाबों की नहीं होती। जिसका मुख चमक रहा है, ऐसे शेर के समान वह रावण यह सुनकर बोला—मैं धीर, मर्यादा से हीन हाथी के सूंड़ के समान भुजाओं वाले दुष्ट बलवान, चंचल दशरथ के बेटे राम और श्यामल लक्ष्मण को, जो हाथी के समान श्याम हैं, ऐसे सुभटों को तुमुल-युद्ध में मारूँगा और मैं गुणों और मणियों के संचय की खान अभिनव हरिणियों के समान नेत्र-दाली कामदेव की भूमि, उसका अपहरण करूंगा। नारद मुनि कहते हैंहे रावण, गर्व से विह्वल प्रलाप से क्या ? क्यों कि वन में श्वापद और सिंह का संहार कौन कर सकता है ? काल और कृतान्त को कौन मार सकता है? सूर्य और चन्द्र को आकाश के प्रांगण से कोन स्खलित कर सकता है ? युद्ध के प्रांगण में राम और लक्ष्मण को कौन छ सकता है ? हे राजन्, जानकी का कौन अपहरण कर सकता है? तब राजा कहता है-अपराध करनेवाले वाराणसी नगरी के राजा उन दोनों बालकों के सिरकमलों को जब मैं काढूंगा, हे मुनि तब आप वहाँ आना। घत्ता-फिर तीनों लोकों में भयंकर शत्रुओं का नाश करनेवाला रावण धनुष की टंकार करता है। और कहता है-विद्याधरों के बक्षस्थलों को चीरने वाली मेरी बाणों की परम्परा युद्ध में राम के कवच को छिन्न-भिन्न करेगी। 5 AP मंडइ 16. P ससमूहह । (3) 1. AP रणपबल। 2. रामण। 3.A केसरसक; P°केसरसा। 4. AP कि! 5. AP घिप्पइ। 6. AP वाराणस"। 7.A तइलोक।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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