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________________ 70.13. 13] महाका-पुष्फयंत-बिरहयउ महापुराणु {55 यत्ता-धणुकोडिचडावियधणगुणहु"दरिसियवइरिविरामहु ।। णियधीय सीय णवकमलमुहि जणएं दिण्णी रामहु ।।12।। 13 वइदेहि धरिय करि हलहरेण णं विजुल धवले जलहरेण । णं तियणसिरि परमप्पएण णं णायबित्ति पालियपएण।' णं चंदें वियसिय कुसुममाल' गोविदें णं सिरि सारणाल । दुव्यारवइरिवारणभुएण सहुं सीयइ सहुँ केकयसुएण। अच्छइ दासरहि सुहेण जाम पिउणा णियद्य उ पहिउ ताम। आणिउ विणीयपुरि सीरधारि सकलत्त सभाउ दुहावहारि । अहिसिविवि जिणपडिमउ घएहि दहियहि दुद्धहि धारापएहि । णिव्वत्तिय जिणपुज्जा महेश सिसुणहें तूसिबि दस रहेण। अवराउ सत्त कण्णाजतासु निगड मुलगारागान। सोलह तह महिलच्छीहरास अलिकुवलयकज्जलसामलासु । गंभीरधीरसाहसधणाह रइयउ विवाहु दोहं मि जणाहं । कोणाह्यतुरई रसमसंति' मिहुणाई मिलतइंदर हसति। संमाणवसई सयणई गडंति पिसुणई चिंतासायरि पद्धति । पत्ता---शत्रुओं को अंत दिखाने वाले तथा धनुष की कोटि पर सपन शब्द के साथ डोरी चढ़ाने वाले राम को जनक ने नव कमल के मुखवाली अपनी कन्या दे दी। (13) राम ने सीता का पाणिग्रहण कर लिया मानो धवल मेघ ने बिजली को पकड़ लिया हो, मानो परमात्मा ने त्रिभुवन की लक्ष्मी को ग्रहण कर लिया हो, मानो प्रजा के पालन करने वाले राजा ने न्यायवृत्ति को पकड़ लिया हो, मानो चन्द्रमा ने पुष्पमाला को विकसित किया हो, मानो गोविन्द ने लक्ष्मी के कमल को पकड़ लिया हो। तब दुर्वारशत्र ओं से निवारण करने वाली भुजाओं वाले, कैकेयी के पुत्र और सीता के साथ, लक्ष्मण के साथ राजा राम जब सुख से रहते थे, तो पिता ने एक अपना दूत भेजा और दुःख का हरण करने वाले श्रीराम को पत्नी सहित अयोध्या बुलवा लिया। धी, दही, दूध की धाराओं से जिन भगवान् की प्रतिमा का अभिषेक कर महान् पुत्र स्नेह से संतुष्ट होकर राजा दशरथ ने जिनेन्द्र की पूजा की। हाथ में मूसल अस्त्र को धारण करने वाले राम को और भी सात कन्याएँ दी गई, तथा भ्रमर नील कमल और कज्जल के समान श्यामल तथा धरती की लक्ष्मी को धारण करने वाले लक्ष्मण को सोलह कन्याएँ दी गईं। और इस प्रकार गंभीर, धीर, साहस रूपी धन वाले उन दोनों का विवाह किया गया। दंड से आहत नगाड़े बजने लगे, मिथुन जोड़े मिलने लगे, कुछ-कुछ और मुस्कराने लगे। सम्मान के वशीभूत होकर स्वजन लोग नृत्य करने लगे, दुष्ट लोग चिता रूपी सागर में पड़ गये। 11A दाणगुणः धणुगुणहु । (13) 1.A पालिपवएण। 2. Pकूमयमाल । 3. AP पिहिउ।4P धारवाह। 5.A समसंमति।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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