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________________ 70. 11.9] महाकह-पुष्पवंत-विरश्य महापुरागु सकयत्थर मुद्धिहि मज्झु खीणु बलियाहि तीहिं सोहइ कुमारि - रोमावलिमग्गु मनोहर घत्ता इयर कह दंसण विरहि रोणु । यह कह तियहारि । कष्णहि केरउ संघइ ॥ इह कह सिणिसिरिसिहरु मयरकेउ आसंघइ (110) 11 देविहि थण रइरस पुण्णकुंभ भुय मयणपासकास गणम कंधरु बंधुरु" रेहाहि सहइ लंबउ बिबाहरु हइ चक्खु दिदित्ति जित्तवत्तियाई मुससिजोहर दिस धवल' थाइ लोहं विदीहतणु जि जुत्त भालु भिद्धिदु व वरिठ्ठ Line लाउ कुलित्तु वहइ इयरह पुणु' कामतिसाणिसुंभ । इयरह कह मण बंधणु जि भणमि । इयरह कह कंबु रसंतु कहइ । इयरह' कह तग्गहणेण सोक्खु इयरह कह विद्वई मोतियाई । इयरह कह ससि झिज्जंतु जाइ" । इयरह कह पत्तई जणमणंतु । इयरह कह तहु मयणास' दिछु । इयरह कह मानव वंदु वहइ । [53 10 5 का क्षीण मध्य भाग सफल है, नहीं तो उसके देखने से विरही दुबला क्यों हो जाता है ? उस कुमारी की त्रिवलि शोभित होती है, नहीं तो वह त्रिभुवन के लिए सुन्दर कैसे होती ? धत्ता - उस कन्या की रोमावली का मार्ग सुन्दर और सराहयीय है, अन्यथा उसके स्तन पहाड़ की चोटी पर कामदेव किस प्रकार आश्रय ग्रहण करता ? रूपी 5. A मुहि । 6. AP कह विरहें विरहि । (11) 1.AP कह। 2. A कंबुरु 3. A कंठ रसंतु । 4. A इह रहूं। 5. A घवलि । 6. AP खिज्जंतु । 7. AP मयणासु । 8 A कुडिलंतु । 9. P माणविदु । (11) देवी के स्तन काम रूपी रस के पूर्ण कुंभ थे, नहीं तो वे काम रूपी तृष्णा का नाश करने वाले कैसे होते? उसके बाहुओं को मैं कामदेव के पाश के समान मानता हूँ, नहीं तो मैं कहता हूँ कि फिर वे देव मन को बाँधने वाले कैसे हैं ? उसके कंधे सुन्दर हैं जो रेखाओं से शोभित हैं, नहीं तो शंख बोलता हुआ इस बात को कैसे कहता है ? उसके लाल-लाल ओंठ नेत्रों का हरण करते हैं, नहीं तो फिर उनको ग्रहण करने में सुख कैसे होता है ? मोती दाँतों की दीप्ति के द्वारा जीते जाकर फेंक दिये गये हैं, नहीं तो वे इस प्रकार विद्व कैसे होते ? मुख रूपी चन्द्रमा की ज्योत्स्ना से दिशाएँ धवल हो गई हैं, नहीं तो चन्द्रमा दिन-दिन क्षीण क्यों होता है ? उसके लोचनों की दीर्घता उपयुक्त ही है, नहीं तो वे जनों तक कैसे पहुँचते हैं ? उसका भाल भी आधे चन्द्रमा के समान श्रेष्ठ है, नहीं तो वह मद का नाश करने वाला कैसा होता, उसका केशकलाप कुटिलता को धारण करता है, नहीं तो वह मानो सिंह को कैसे मारता ?
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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