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________________ 50] महाकवि पुष्पवम्त विरचित महापुराण [70. 7.2 महि कंपइ जंपई को वि साहु किह चुक्कइ एवहिं पुहइणाहु । एयइधीयइ संभइयाइ खज्जेसइ णाई' बिसूइयाइ। खयकालें ढोइय भरणजुत्ति वणि मिमपिइ नहि दि पुनि! . सुइसुहहराउ-विहुणियसिराउ आयण्णिवि मितियगिराउ। 5 खगभूगोयरसिरिमाणणेण मारियउ" पवुत्त दसाणणेण। कि गरलवारिभरियइ सरीइ कि सविसकुसुममयमंजरीइ। बंधवयणहिययवियारणीइ कि जाय इ धीयइ वइरिणीइ। णवकमलकोसकोमलयराउ उद्दालिवि मंदोयरिकराउ। णिम्माणुसि कामणि घिहि तेम पाविट्ठ दुट्ठ णउ जियउ जेम। 10 पत्ता-तं णिसुणिवि तें मारीयएण भणिय देवि वररूवउं ।। तुह गम्भि भडारो थीरयणु गोत्तखयंकर हुयउं ।।7।। मुइ'मुइ दहमुहखयकालदूग ते होतें होसइ अवर धूय । बाहापवाह ओहलियणयण ता तरुणि चवइ ओहुल्लवयण मारीयय णवतरुफलरसहि कीलतपविखरमणीयसहि।। घल्लिज्जसु कत्थइ पुत्ति तेत्यु रविकिरणु ण लग्गइ देहि जेत्थु । काँप उठी । तब कोई सज्जन व्यक्ति कहता है कि इस समय राजा किस प्रकार बच सकता है। यह उत्पन्न हुई कन्या महामारी की तरह सबको खा जायेगी, यह क्षयकाल के द्वारा मरण की युक्ति यहाँ लाई गई है, इसलिए इस पुत्री को निर्जन वन में डाल दिया जाए । कानों के सुख का हरण करने वाली तथा शिरों को प्रताड़ित करने वाली ऐसी ज्योतिषी की वाणी सुनकर विद्याधर और मनुष्यों की लक्ष्मी का भोग करने वाले रावण ने मारीच से कहा कि विषजल से भरी हुई नदी से क्या ? विष से परिपूर्ण कुसुम मंजरी से क्या ? बाँधवजनों के हृदय को विदीर्ण करने वाली इस दुश्मन लड़की के पैदा होने से क्या? इसलिए नव कमलकोष से भी अधिक कोमल मंदोदरी के हाथ से इसे छीनकर मनुष्यों से रहित जंगल में इस प्रकार छोड़ दो, जिससे यह पापात्मा दृष्ट जीवित न रहे। पत्ता- यह सुनकर उस मारीच ने मंदोदरी से कहा-हे देवी, तुम्हारे गर्भ से सुन्दर रूप वाला स्त्रियों में रल हुआ है, परन्तु गोत्र का नाश करने वाला है। तुम रावण क्षयकाल की दूती के समान इसे छोड़ो-छोड़ो। क्यों कि रावण के रहने पर दूसरी कन्या होगी। तब आँसुओं के प्रवाह से जिसका नेत्र मलिन है, ऐसी उस युवती ने नीचा मुख करते हुए कहा हे मारीच, जो नव वृक्षों के फलों के रस से आई हो, जहाँ क्रीड़ा करते हुए पक्षियों का सुन्दर शब्द हो और जहाँ इसकी देह को सूर्य की किरण न लगे ऐसे वन में कहीं इस पुत्री (7) 1. A तार वि; P तासु वि । 2. A 'मुहबराउ। 3. A मारीपउ वृत्त । 4.A गरुमारि । 5. A णिसुणतें मारियएण। 6. P भरिए धीरयण् । (8) I. A मुम मुय । 2. A बाहप्पवाह" । 3. A पल्लिज्जाद।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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