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________________ आलोचनात्मक मूल्यांकन [15 के मनुसार अज का अर्थ तीन साल का पुराना जौ था, जबकि पर्वतक के अनुसार बकरा। लोगों ने पर्वतक को नगर से निकाल दिया। पर्वतक मालकायण का शिष्य हो गया। वे दोनों अयोध्या नगरी पहुंचे। पशुयश का प्रचार करते हुए तथा यज्ञ में होमे गए पशुओं को साक्षात् देव बताते हुए, राजा सगर को उन दोनों ने धोखा दिया। उनके बहकावे में भाकर राजा ने अपनी पत्नी सुलसा भी यज्ञ में होम दी। पत्नी के वियोग से दूखी होकर सगर ने एक दिन जैन मुनि से पूछा, 'क्या पणओं का वध धर्म है ?' उन्होंने कहा कि ही अहिंसा से धर्म होता है और हिंसा से अधर्म । सगर के पूछने पर मुनि ने बताया कि सातवें दिन उसके ऊपर बिजली गिरेगी। सगर ने आकर पर्वतक से कहा । उसने जनमुनि की निंदा की । असुरेन्द्र ने राजा को नभ में मुनि सुलसा देवी के दर्शन करा दिए। सगर दुगुने उत्साह से यज्ञ में लग गया। अन्त में राजा सगर पर गाज गिरती है और वह मारा जाता है। असुरेन्द्र ने एक बार फिर कपट भाव किया और राजा वसु को स्वर्ग के विमान में स्थित बताया। सगरका मन्त्री आनंदित हआ। उसने कहा कि मुखों ने यज्ञ की निंदा की। उसने भी राजस्थ यश किया, विद्याधर दिनकर ने उसे आड़े हाथों लिया और राजा के एक मास के होम को नष्ट कर दिया । महाकाल के विस्तार को भी नष्ट कर दिया। नारद का मन आनंदित हुआ । असुरेन्द्र ने घोषणा की कि पर्वतक तुम नाश को प्राप्त मत होओ। तुम चारों तरफ जिनप्रतिमाएं स्थापित कर दो जिससे विद्याधर विद्याएं प्रवेश न कर पाएँ । वे दोनों नरफ गये । असुरेन्द्र ने लोगों से कहा कि उसने अपना बदला 70ो संधि अतिशयमति मंत्री के हित वचन सुनकर राजा दशरथ का मिथ्या दर्शन नष्ट हो गया। उसने जैन धर्म ग्रहण कर लिया । राजा के मंत्री महाबल ने पुत्रों का प्रताप देखने के लिए, उन्हें यज्ञ में भजने का प्रस्ताव रखा। राजा दशरथ ज्योतिषी से राम लक्ष्मण के भविष्य के बारे में पूछता है। वह बताता है को सतानेवाले राघण को मारकर विजयी होंगे। देशरय भुवनविख्यात रावण के बारे में पूछताह। पुरोहित कहता है कि नागपुर में राजा नरदेव था। उसने दीक्षा ले ली। आकाश में जाते हुए चपलबेग और विचित्रकेतु विद्याघरों को देखकर उसने निदान बौधा कि तप के प्रभाव मे मेरा इन विद्याधरों जमा ऐश्वर्य हो। विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मेघ शिखर में सहस्रगीव नाम का राजा था। वह झगडा करके वहाँ से त्रिकट नगर में आ गया। उसने लंका का निर्माण कराया । बीस हजार वर्ष उसने उस नगरी का पालन किया। शतप्रीव ने पच्चीस हजार वर्ष। पंचदशग्रीव बीस हजार वर्ष जीकर मर गया। पुलस्त्य पन्द्रह हजार वर्ष । उसकी पत्नी मेषलक्ष्मी की कोख से राजा नरदेव रावण के रूप में उत्पन्न हआ। उसका कोई प्रतिमम नहीं पा 1 राजा मय ने अपनी कन्या मन्दोदरी से उसका विवाह कर दिया। एक दिन आकाशमार्ग से जाते हुए उसने ध्यान में लीन मणिवती को देखा। रावण की मति चंचल हो गई। उसने कन्या को ध्यान से विचलित करना चाहा। होमणिवती ने यह निदान बौधा कि अगले जन्म में वह उसकी कन्या होफर उसकी ही मौत का कारण बने । अगले जन्म में वह मंदोदरी की कन्या हुई। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सुनकर रावण ने उसे मारना चाहा । परन्तु मारीच ने मंदोदरी को समझाकर उसे मंजुषा में रखवाकर मिथिलानगर के उद्यान में गड़वा दिया। एक किसान को वह मंजूषा मिली जिसे उसने वनपाल को देदी। उससे वह राजा जनक को दी गई। जनक ने उसे अपनी पत्नी को दे दिया। सीता जब बड़ी हो गई तो उसके स्वयंवर के सिलसिले में राजा दशरथ ने राम लक्ष्मण को वहां भेजा। राम ने उससे विवाह कर लिया। वे उसे बिनीतपुरी (मयोष्ण) ले आए। वसंत के आने पर अयोध्या में वसंत क्रीश की धम मच गयी। राम ने पिता से अनुमति लेकर परंपरागत वाराणसी पर कम्जा कर लिया। इस प्रकार राम, लक्ष्मण और सीता काशी में रहने लगे।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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