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________________ 7 69.26.71 महाक-कर्मत विद्रव महापुरा अवरह्नि दियहुल्लइ वणि भमइ । पहु पेइ तं तहि पडिलवइ' । पक्खलणहु कारण संभरइ । Error safa पिछवरु । उच्छलिवि बाणु धरणियति गउ । उच्चाइवि भवणहु आणियउ । सई वडिय कंचणमयइ पीढि । किपि जणु जणु जणवई पयडई | धम्में शियसच्चेण वसु गयणाच ण णिवड 112511 सहं सहयरकिंकरहिं रमइ पहिंगण पक्खलइ णीरुवु ण पहलु पर धरइ इस चितिवि तेण विमुक्कु सरु आयासफलिमउ खंभु हउ परिमट्ठेउ हत्थे जाणिय त खंभ उप्पर हरिगीदि घत्ता – आगु चलइ 26 णारय पव्वय गुरुगिरिगुहिलु" । पच्छा उपायह' ओसरइ । सरिवारिपवाहाकरियहं । पुण मित्तहु वयणु णिच्छियजं । भणु पवय मोरिउ केत्तियज । बिसेष्पिणु णारउ बज्जरइ । ओसरि सरहु जो पिछणिहि । tudents' वासरि विविह्लु चंदकर कलाउ ण जलि करइ पत्त तित्ताई' म्यूरियहं इय तेण कज्जु परिहच्छियजं es fीलकंठ सुविचित्तिय सोण मुणइ ण भणs पहि चरइ सिहिणी सत्त इह् एक्कू सिहि frकरों के साथ क्रीड़ा करता है और दूसरे के साथ दिन में घूमता है। आकाश के आंगन पक्षिकुल स्खलित होता है। राजा उसे देखता है। वह वहीं कहता है कि आकाश अरूप है, वह दूसरों को धारण नहीं कर सकता। वह उसके स्थिर होने का कारण सोचता है। यह विचार कर धनुष की डोरी खींचकर अपना पुंख वाला तीर छोड़ा। उससे आकाश में स्थित स्फटिक वाला खंभा आहत हो गया, और बाण भी उछलकर धरती पर गिर पड़ा। हाथ से छूकर उसने जाना और उठाकर अपने घर ले आया। सिंहों के द्वारा धारण किये गये उस खंभे पर उसकी स्वर्णमय पीठ पर वह चढ़ गया। धत्ता - जनपद में लोगों को यह बात विदित हो गई कि आसन अणु मात्र भी नहीं हिलता । धर्म से और अपने सत्य से राजा वसु आकाश से भी नहीं गिर सकता । [33 4. P पडवल । 5. AP धणुगुणि। 6. AP ( 26 ) 1. Aता एक्कहि। 2. AP गय गिरिगुहिल 5. AP ओसर । भू 7. A हरिवीठि; P 3. P पच्छासु । 4 10 (26) एक दूसरे दिन नाना फल वाले विशाल पहाड़ की गुफा में नारद पर्वतक गये। वसु ने कहा कि मयूर जल में अपने पंख नहीं करता । वह अपने पिछले पैरों से हट जाता है। तालाब के पानी के प्रभाव से प्रवाहित मयूरों के पंख गीले हैं। इस प्रकार उसने असली बात छिपा ली। और फिर मित्र का मुख देखा, हे पवर्तक, बताओ कि विचित्र पंखों वाले मयूर कितने हैं और मयूरिया कितनी हैं। वह कुछ नहीं सोचता न कहता और रास्ते पर चलता है। नारद हँसते हुए कहता है कि यहाँ एक मयूर और सात उसके मोर हैं जो पंखों के समूह वाला तालाब से हट गया है। प्रखर रिहि गीटि । 8. वीडि A सिताई (तिलाई ? ) 5
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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