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________________ [69.24.2] महारु-पुष्यंस- विरइय महापुराण पुणु तक्खणि असुरें जाणिय जिह मामिहि मामह हित्त मइ जिह गहिय तयरि मंदगइ सहु मंतिहि साकेयाहिवइ इय* चितिवि बिरलोयणु मुहकुहरविणिग्गय वेयझुणि सुलसावइजीवियसिरिहरहु जायउ सहाउ जो दुम्मयहु 'उत्त' गसत्तधरणिय लघरि विसावसु राउ विमलजसु 23 जिह कव्वु करेष्पिणु आणियजं । जिह पिंर्गे पडवणी विरइ । तिह एवहि घुउ पावमि कुगइ | कहिँ एवहिं बच्चइ' लद्ध लइ । जायउ सो लालकायणउ | हिंसालउ दूसियपरममुणि । तहिं तासु महाकालासुरहु । आयण्णहु तह कह पव्व यहु । एत्थेव वेत्ति सावत्थिपुरि' । तह सिरिमदेविहिपुत्तु वसु । त्ता--में खीरकलंबु दियवरु सत्यवियारउ ।। तासु चट्टु बसु जाउ पब्वज अवरु वि णारउ ||23|| 24 स सीसहि सो परमायरिउ अभाव यासणिट्ठवियणिसि एक्aहिं दिणि काणणि अवयरिउ । उवविउ दिट्ठउ तेत्यु' रिसि । 31 10 (23) तब उसी समय उस असुर ने जान लिया कि किस प्रकार काव्य रचकर लाया गया था, किस प्रकार मामा' और मामी की बुद्धि को ठगा गया, और किस प्रकार मधुपिंगल ने वैराग्य धारण किया, किस प्रकार मंद गति कन्या ग्रहण की गई, और किस प्रकार मैं कुगति को प्राप्त हुआ। साकेत नगर का राजा सगर इस समय मंत्रियों के साथ बचकर कहाँ जाएगा। मैं उसे अभी लेता हूँ। फिर विचार कर वह लाल आँखों वाला सालंकायण नाम का ब्राह्मण हो गया। जिसके मुख विवर से वेद-वाणी निकल रही है, जो हिंसक परम मुनि को दूषित करने वाला है, सुलसा के पति (सगर) के जीवन रूपी लक्ष्मी का हरण करने वाले उस महाकाल सुर का जो सहायक बन गया ऐसे खोटे मद वाले प्रवर्तक ब्राह्मण की कथा सुनो ! इसी भरतक्षेत्र में ऊंचे सात धरणीतल बाले घरों से युक्त श्रावस्ती नगरी में विमल यश वाला विश्वावसु नाम का राजा था। उसकी श्रीमती नाम की पत्नी से बसु नाम का पुत्र था । घत्ता--उस नगर में क्षीरकदम्ब नाम का शास्त्रों का विचार करने वाला श्रेष्ठ ब्राह्मण था, राजा वसु, पवर्तक और एक और नारद उसके चेले बन गए । (24) अपने शिष्यों के साथ वह महान् आचार्य क्षीरकदम्ब एक दिन जंगल में गए। बादलों से रहित आकाश के अंतराल में जिन्होंने रात्रि व्यतीत की है, ऐसे एक मुनि को उन्होंने बैठे हुए देखा । (23) 1 A अच्छाई लबू जह। 2. P तं चितिथि। 3. A कपकव्ययहु । 4. AP उत्तुंग | 5. सावत्य पुरि; P सावित्यपुर । ( 24 ) 1. A तेण । 1. ससुर और सास । 5
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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