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________________ अंगरेजी टिप्पणियों का हिन्दी अनुवाद भयसठवीं सन्धि (2) 13 आने वाली मृत्यु की सूचना अथवा स्वर्ग से मस्त झेना । (9) 3b अनन्ततीर्थ या अनन्तनाथ का शासन (आम्नाय) जिसने अन्य माम्नाबों को निरस्त या प्रभावहीन कर दिया। उनहत्तरवी सम्धि बामदेव और बलराम के गुणों की स्तुति के लिए जो रामायण काय वा रामान वासुदेव (लकमग) और हलधर (राम) के गुणों और विशेषताओं का गौरवीकरण है। 4 भरत के द्वारा माकषित में निर्माह करूंगा। मैं (कवि) अपने भाश्रयदाता भरत की इछामों को पूरा करना चाहता है। 68 मेरे पास कुछ भी सामग्री नहीं। मेरे पास साधन और सुविधाएं नहीं है कि यह कार्य पूरा कर सई। 78 कविराज मंचू। (महान् कपि स्वयंभू जिन्होंने हजारों मित्रों की सहायता से राम के इतित पर पाम्य भी रपना की। 8 चतुर्मुख, महाकपि चतुर्मुख जैसा कि स्वयंभू कवि का नाम बतलाया है। तुम यानी भारमतवाला। 9 मेरा एक मह वह भी खंडित है। कवि पुष्पदंत कहता है कि उसका एक ही मुख। जबकि पतुमख के चार मुख थे । इतने पर भी मेरा यह मुख खंडित है । एक अन्य जगह पुष्पदंत ने स्वयं को खंग्केवि कहा है और लिखा है कि उनका मुख पक्र (टेढ़ा) था। 13 सुकवियों द्वारा प्रकाशित मार्ग पर, उस मार्ग पर जिसे चतुर्मुख स्वयंभू जैसे कवियों ने आलोकित किया है। मार्ग यानी सेतु जो बानर यानी हनुमान द्वारा निर्मित है। (313-10 ये पंक्तियाँ रामायण में आए पात्रों के बारे में विचित्र विश्वासों या धारणामों का वर्णन करती है। राजा |णिक गौतम इन्द्रभूति से पूछता है कि वह इनके बारे में सच बात बताए। ये है(I) रावण वशमुख) के दस मुंह थे।(2) पुत्र इंद्रजित् उम्र में अपने पिता से बड़ा था । दूसरे शब्दों में इन्द्रजित यद्यपि रावण का पुत्र था, परन्तु उससे पहले पैदा हुआ था ।(3) रावण मनुष्य नहीं, रासस या। (4) उसकी बीस अखें और बीस हाथ थे, और यह कि वह शिव की उपासना अपने सिरों से करता था।(5) रावण राम के तीरों से मारा गया । (6) श्रीरमण (लक्ष्मण) के हाथ लंबे और स्थिर पे, शुकते नहीं थे। (7) सुग्रीव बौर दूसरे बन्दर थे, वे मनुष्य नहीं थे । (8) विभीषण बब भी रह रहा है, या वह चिरंजीवी है। (१) कुम्भकर्ण छह माह सोता है और एक बार में से खाकर उसकी भूख शान्त होती है। जो हिन्दू रामायण से परिचित हैं वे पाएंगे कि क्रमांक 2 को छोड़कर, हिन्दू रामायण का दूसरी धारणामों में काफी कुछ समर्थन है। लेकिन क्रमांक 2 में इस प्रकार का कोई समर्थन मेरे देखने में नहीं
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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