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________________ 34] महाकषि पुष्पवंत इस महापुराण रामायण की काव्य-शैली अलकत शैली है। प्रारम्भ में ही रत्नपूर के राजा प्रजापति का वर्णन है " जित्तउं जमकरण सस्थ जिस सरासह वि अंबुधि जिस स वि (8914) ध्यान दें कि 'जिउ की जगह 'जित्त' भूत कृदन्त (जित के 'a' को अनावश्यक द्वित्व) का प्रयोग सर्वत्र है। 'मेन' का 'जे' और 'बुद्धया' का 'बुदिह' । अपभ्रंश में ऐसा कठोर नियम नहीं है कि मध्यम व्यंजन का लोप हो हो । हिन्दी 'जीता' का 'विस' से सीधा सम्बन्ध है। दोनों में सामान्यभूत में कृदन्त क्रिया का ही प्रयोग है वह भी कम वाच्य में । करण कारक को 'ने' संस्कृत विभक्ति इन/एन का विकास है । जे/जेन/ येन से बिसने के विकास की कथा यह है कि आगे चलकर संस्कृत के यस्य/तस्य/मस्य के बचे हुए रूप (जिस/ उस/इस) मूल सर्वनाम की तरह प्रयुक्त होने लगे और उनमें विभक्ति या परसर्ग का प्रयोग बस्री हो गया। इस प्रकार अलंकृत शैली में होते हुए भी पुष्पदन्त की भाषा सरल है, छोटे-छोटे वाक्यों में धारावाहिकता है । कषि की निरलंकृत सरल शैली का एक दूसरा नमूना देखिए-- "अत्यतु गिवार को मिहिरु को रखाइ मावंत मरण । जगि कासु ण दुक्का जमकरण विअगावि पश्छमरइ वापस-सरि पइसरह ।।" (69/8) और अब यमक और श्लेष हाली शैली देखिए "अहि सालि रमभ कोला हरई, अह सालि धन छत्तंसरई । जहिं सालिकमल छज्य सर, जहिं सालिहिमाई अक्स्वरई।" (69/11) तित क्रिया में भी 'त' सुरक्षित है "ते सत्प, सुगंति गुणति षण, मउप मुर्यति ण वहरि सह ।” (69113) इसी प्रकार कृवंत क्रिया में भी "त" सुरक्षित है "सोहा वसंतु पगि पइसरंतु अहिणव साहारहिं महमहंतु ।" (70/14) और यह लयात्मक शैली का उदाहरण भी देखिए "वना वीणा पिज्जा पाणं, पियमानुस चित साही ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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