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________________ [205 10 78. 24. 10] महाका-पुष्फपंत-विरइयउ महापुराणु अज्जु वरुणु अप्पाणु पसंसउ अज्जु बाउ उववणइं विसउ । अज्जु कुबेरु कोसु मा ढोबउ अज्जु कामु अप्पाणउं जोवउ । भायर पड़ गइ णारयठाणहु' अज्जु णयरि णदउ ईसाणहु । घत्ता-पई मुइ धरणीसर खगपरमेसर सुरवर जयदुंदुहि रसउ ।। तृय राहवचंदहु स्य गोविदहु अज्जु णिरंकुस' उरि वसउ ।।23।। दुवई-अज्जु मिलंतु मच्छ मंदाइणि वहउ ससंकपंडुरा॥ पई मुइ खेयरिंद कह' होसइ सा णवघुसिणपिंजरा॥छ।। णजपा साज गायिहि पण हिनहिन परियणदिहि । रामु ण कुद्ध कुद्ध जगभक्खउ लक्खणु ण भिडिउ भिडिउ कुलक्खउ। चक्कु ण मुक्कु मुक्कु जमसासणु तं णउ लग्गउ लग्गु हुयासणु । वन्छु ण भिष्णु भिषणु धरणीयलु रुहिरु ण गलिउ गलिउ सज्जणबलु । तुहं णउ पडिउ पडिउ कामिणिगणु तुहं ण मुओ सि मुउ विहलियजणु। चेट्टण भग्ग भग्ग लंकारि दिट्ठि ण सुण्ण मुण्ण मंदोयरि । हा भायर किण किन णिवारिउ कि मई तण वयण अवहेरिउ। लक्खण राम काई णउ मण्णिय किं सुग्गीव हणुव अवगणिय। उपवनों का ध्वंस कर ले । आज कुबेर कोश को धारण करे। आज काम अपने को देख ले। हे भाई, तुम्हारे नरक-स्थान पर जाने पर ईशान आज नगर में आनन्द मना ले | पत्ता हे धरणीश्वर विद्याधरेश्वर, तुम्हारे मरने पर देववर अपनी जय डुगडुगी बजा लें । स्त्री (सीता) राघवचन्द्र के और लक्ष्मी लक्ष्मण के उर में निवास कर लें। 10 आज मत्स्यों से मिलती हुई गंगा नदी चन्द्रमा की तरह सफेद होकर बहे । वह तुम्हारे बिना हे खेचरेन्द्र, नव-केशर से पिंजरित कैसे होगी? वह नारद नहीं आया, नाश का विधाता आया था। सीता का अपहरण नहीं किया गया, परिजनों के भाग्य का अपहरण किया गया। राम क्रुद्ध नहीं हुए, जग-भक्षक क्रुद्ध हुए। लक्ष्मण नहीं लड़ा, कूल-क्षय ही लड़ा। चक्र नहीं छोड़ा गया, यम-शासन ही छोड़ा गया । वह नहीं लगा वरन् हताशन ही लगा। भाई भन्न नहीं हुआ, धरणीतल भग्न हो गया। रक्त नहीं गला, सज्जन-बल गल गया । तुम नहीं गिरे, कामिनीजन गिरा । तुम नहीं मरे, समस्त दिकलित जन मर गया। तुम्हारी चेष्टा भग्न नहीं हुई, लंकापुरी भग्न हो गई। दृष्टि सूनी नहीं हुई, मंदोदरी सूनी हो गई। है भाई, तुमने मेरे मना किए हुए को क्यों नहीं माना ? तुमने मेरे वचनों की अवहेलना क्यों की? तुमने राम और लक्ष्मण को क्यों नहीं माना ? तुमने सुग्रीव और हनुमान् का अपमान क्यों किया? 4.A विहजउ । 5. A णारयगमणहु । 6. A सुरवह। 7. AP तिय । 8. AP सिय 9.A गिरकुसि । (24) 1.A कहि । 2. A आउ णाद। 3.A णिहित ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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