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________________ [179 17.13.12] महाकइ-पुप्फयंत-विर इयज महापुराणु घत्ता–फेडियमुहवडधुयधयवहं दाबियदूसहगयघडघायहं ।। दलवट्टिमहरिवरभडथडहं मुसुमूरियसामंतणिहायहं ।।12।। 13 हेला-विज्जाबलरउद्दहं जायगारवाणं । वाटिरहविमद्दहं सद्दरउरवाणं ॥छ।। जयकारियराहवरावणाहं जयलच्छिरमणरंजियमणाहं । समुहागयाहं सपसाहणासं जुझंतहं दोहं मि साहणाह। असिणिहसणसिहिजालउ जलंति' मुडपक्खरपल्लाणई जलति । 5 णीवंति ताई वणरुहजलेण केण वि पइसिवि आहवि छलेण । परिमुक्कसंकुपिटुपिछफारु लग्गउ णं गयवरगिरिहि मोर। मंडयलि विलग्गउ बाणपुंखु दीसइ णं छप्पउ दाणकखु । केण वि गयणंगणि देवि करणु ककिकुंभवीदि थिरु थविधि' चरण । होट्टिविजारोहु पिबद्धको कडिछुरियइ पणिवि चित्तु जोहु। 10 अरिणरकरघल्लिय लउडिदंड चूरिय संदण संगामचंड' । माणिजडिय पडिय मंडलियमउड उच्छलिय रयणकरणियर पयड। घत्ता--जिन्होंने मुखपटों और उड़ते हुए ध्वजपटों को नष्ट कर दिया है, जिन्होंने दुःसह गज समूह को द्रवित कर दिया है, जिन्होंने अश्ववरों और योद्धा-समूह को चकनाचूर कर दिया है और सामंत-समूह को कुचल दिया है, जो विद्याबल से भयंकर हैं, जिन्हें गौरव उत्सन्न हुआ है, जो हाँके गए रथों से विदित हैं, जो शब्द करते हुए वाणों से भयंकर हैं, जिन्होंने राम और रावण का जय-जयकार किया है, जिनका मन विजयलक्ष्मी के साथ रमण करने से रंजित है, आमने-सामने आई हई, प्रसाधनों से युक्त युद्ध करती हई ऐसी दोनों सेनाओं के तलवारों से उत्पन्न अग्नि ज्वालाएं जलने लगती हैं. गजों और अश्वों के कवच जलने लगते हैं। उन्हें घावों से निकलते हुए रक्तजल से शांत किया जा रहा था। किसी ने छल से युद्ध में प्रवेश कर विशाल पुख बाला तीक्ष्ण शंकु छोड़ा जो इस तरह लग रहा था, मानो गजराज रूपी पर्वत पर मयूर हो। गंडतल पर लगा हुआ तीर पु ख ऐसा प्रतीत होता था, मानो दान (मदज़ल) का आकांक्षी भ्रमर हो। किसी ने आकाश के प्रांगण में करण (आसन) देकर हाथी के कुंभपीठ पर अपना दृढ़ पैर स्थापित कर, तथा लौटकर, आरोहण करने वाले बद्धक्रोध योद्धा को कमर की छुरी से प्रहार कर नष्ट कर दिया। शत्र-मनष्यों द्वारा फेंके गए लकुदिदंडों ने युद्ध में प्रचंड स्यंदनों को चूर-चूर कर दिया । मणियों से विजटित मांडलीक राजाओं के मुकुट गिर गए । रत्नों का किरण समूह प्रकट रूप में उछल पड़ा। किसी के द्वारा (13) 1. A चलति। 2. A पिच्छभाह। 3. A उग्गज । 4. A देवि । 5. A करि रियइ । 6.P डि।7.P °चडि।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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