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________________ 77. 8. 10] महाकर पुष्कवंत-विरहयत महापुराणु दक्खामि थूलई मोत्तियाई । णिणिवरण मेल्लावणसमत्थु । घता - दहवयणहु णिच्च विरत्तियहि को वि भणइ हियवउं संतावमि ॥ अrर सियहि सीयहि तणिय तणु राव रत्तकुषु भइ रावमि ॥17॥ भडुको वि भइ महिषत्तिया इं" अवरु यि करिरयण देमि हत्थ 8 हेला – आरूढा महासवारवाहिया तुरंगा ।। कचणसारिसज्जिया चोहया मयंगा ॥ छ ॥ विवि जाण पाणसंकर्ड । बद्ध सभउभिउभिइरवं । भत कासवारयं । चित्तत्तणं बरंतरं । पलयकालकालग्गिसंहि णं कयंतरायस्य सासणं रहियणहयलं पिहियमहियलं जायं च पडिहड गोंदलं । पवणपह्यविलंबियायरडं सयङचक्क चिक्करणपडिर विप्फुरंत करवालधारयं पणवतुणवझल्लरिमहासर चलियधूलि म इलियदिसासुहं इंदचंदणादतासणं' for बलं बहलकलयलं दुमुदुमंत रणसमद्दल [173 15 5 10 कहता है-धरती पर पड़े हुए स्थूल मोतियों को मैं आज दिखाऊँगा और फिर मैं अपने राजा के ऋण को छुड़ाने में समर्थं गजरत्नों को दूंगा । घता कोई कहता है – नित्य विरक्त (विशेष रूप से रक्त) रावण के हृदय को मैं सताऊँगा और अरसिक ( अरक्त) सीता के शरीर को राघव के लाल कुसुंभ रंग से रंजित करूँगा । (8) महान् अश्वारोहियों द्वारा संचालित अश्व चल पड़े (आरूढ़ हो गए ) । स्वर्ण की काठी से सज्जित हाथी प्रेरित कर दिये गए। जिसमें हवा से आहत ध्वजपट अवलंबित है, जो विविध मानों और जंपानों से व्याप्त है, जिसमें गाड़ियों के चकों के चिक्कार का प्रतिशब्द हो रहा है, जो बद्धशेष योद्धाओं की कुटियों से भयंकर है, जिसमें तलवारों की धाराएं विस्फुरित हैं, मारोमारो कहते हुए अश्वारोही पहुँच रहे हैं, जिसमें प्रणव तुणव व झल्लरी का महाशब्द हो रहा है, जिसमें चित्र-विचित्र छत्रों से आकाश आच्छादित है, जिसमें उड़ती हुई धूल से दिशामुख मैले हैं, जो प्रलयकाल की कालाग्नि के समान है, जो इन्द्र, चन्द्र और नागेन्द्र के लिए त्रास दायक है मानो यमराज का शासन हो, जिसमें अत्यन्त कोलाहल हो रहा है, जिसने आकाशतल को आच्छादित कर लिया है और पृथ्वी को ढक लिया है, जिसमें युद्ध के मृदंग डम-डम बज रहे हैं, जिसमें प्रतिभटों की तुमुल हर्षध्वनि हो रही है। तलवारों के आघात से जहाँ सिर छिन्न हो चुके 6. P महिपत्तिया । ( 8 ) 1. P सारसज्जिया 2. AP पह्यपविलंबिय° । 3. A पवण्यणय । 4. AP दणुवतासणं । 5. P गासणं । 6. A मंदलं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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