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________________ 74.4.8] [129 महाका-पृष्फपंत-विरश्यउ महापुराणु तं' विहसिवि सुग्गीवें भगिउं पई रावणजीविउं कि गणिउं । हणुवंतु सहाउ हडं वि पबलु हरि पुण्णवंतु चालइ अचलु। विज्जउ पहरणई वि चितियइं होहिति मंतविहिमंतियई । हलहर तुई राणउ देव जहिं परिव पसंसिउ काई तहिं । धुउ लक्षणहत्थें रिउ मरइ णिद्दइवहु दुग्गु काई करइ । भो मंगल मा कि पि वि भणहि तह चक्कु कालचक्कु व गणहि । पत्ता-तेण जि तासु सिरु छिदेव्वउं रणि गोविद ।। दिणयरि उग्गमिइ किं पयडिज्जइ चंदें।।3।। 15 हेला-उत्तं राममामिणा जइ अहं महतो॥ ____ लच्छीदरमा हिओ पररपुण्णवंतो ।।८।। णियदूउ तो वि तहु पट्ठवमि उप्पिच्छु समत्थु व णिवमि । णिय सो कि देइ ण देइ बहु पेक्खहुं कि बोस्लइ पुहइपहु। भणु कवणु वओहरविहिकुसलु जिणवरचरणारविंदभसलु। सुग्गीउ कहइ रिउछिदणहु जेठ्ठहु दससंदणणंदणहु । गुणवंत अस्थि णर धरणियर ते जंति ण खे ण होति खयर। सुकुलीणु अदीणु दीणसरणु अग्गि व सोहु व नसहफुरणु । हुए सुग्रीव ने कहा-तुमने रावण के जीवन को क्या समझा? हनुमान सहायक हैं और मैं भी प्रबल हूँ। लक्ष्मण पुण्यवान हैं, वह अचल को चलित कर देते हैं। मंत्र विधि से आराधित, चितित प्रहरण और विद्याएँ भी प्राप्त हो जाएँगी। हे हलधर, जहाँ आप राजा है वहाँ इसने प्रतिपक्ष की प्रशंसा क्यों की। निश्चय ही लक्ष्मण के हाथ से शत्रु मरेगा। देवहीन व्यक्ति का दुर्ग क्या करेगा? हे मंगल, तुम कुछ भी मत कहो, उसके चक्र को तुम कालचक्र समझो। पत्ता-युद्ध में लक्ष्मण के द्वारा, उसी से उसके सिर का छेदन किया जाएगा! दिनकर के उदय होने पर चन्द्रमा के द्वारा क्या प्रगट किया जाएगा? तब स्वामी राम बोले- यद्यपि हम महान् है, लक्ष्मी गृह से प्रसाधित हैं और प्रचूर पुण्य से तो भी उसके पास मैं अपना दूत भेजता हूँ। फिर सैन्यसहित समर्थ उसे मारता हूँ। ले जाई गई वधू को वह देता है, या नहीं ? हम देखें राजा क्या कहता है ? बताओ दूतविधि में कौन कुशल है ? जिनवर के चरण-कमलों का भ्रमर सुग्रीव शत्रु का नाश करने वाले बेठे दशरथ-पुत्र राम से कहता है-हे राजन्, धरणीचर (मनुष्य) गुणवान हैं, परन्तु वे आकाश में नहीं चल सकते क्यों कि वे विद्याधर नहीं है । सुकुलीन अदीन और दोनों के लिए शरण तथा अग्नि और 3. AP ता । 4. Pमंत तिहि । 5. A५ । 6. P तासु जि सिछ । (4) 1. AP जइ वि अहं। 2. AP कि सो। 3.A णरवरणियर।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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