SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [115 5 73. 21.3] महाका-पुप्फयंत-विरइयट महापुराण वित्यिषणु मयरहरु कवणु तरइ तिमिगिलतग्गिलगिलियंगु मरइ। दुग्गमु तिकूडु गिरि कवणु चडइ कक्करि सयसक्कर होवि पड़ा। पायालपरिह जणणियसंक भूगोयरु पइसह कवणु लंक। जइ चिंतहि कुलु तो तुहुँ जि कासु पोसिय जणएं जणक्यपयासुः । जइ चितहि परिह तो सलग्घु हउँ उत्तमु भुवणत्तइ महग्घु । जइ चिंतहि एवहिं रामपेम्मु तो तहु दंसणि तुह' अण्णु जम्मु। जइ चिंतहि सिरि तो हउं जिराउ कि लगउ तुझु सइत्तवाउ। हलि वीणालाविणि मणविमद्दि महएवि महारी होहि भहि । घत्ता हलि सीय महारइ खग्गजलि आहंडलु वि णिमज्जइ ।। आलिंगहि मई सुललियभुयहिं राम किं किर किज्जइ ॥201। 10 दुवई-करिसिररत्तलित्तमोत्तियणियरंचियकेसरालओ ।। संतइ सीहि सीय ससहरमुहि किं रम्मइ सियालओ॥छ।। अमर उ स रामु लक्खणु हयासु दसरहु वि महारउ ताम दासु। कि किज्जइ चरणविहूसणत्तु जइ लभइ हलि चूडामणित्तु । किंकरमहिलहि किं तणुगुणेण किं पाउयाहि मणिमंडणेण । हे प्रिये, तुम अपने चित्त का संवरण क्यों नहीं करती ? विस्तीर्ण समुद्र का संवरण कौन कर सकता है ? तिमिगल मत्स्य को खानेवाले तग्गिल मत्स्य के द्वारा गिलितशरीर वह मर जाएगा। त्रिकूट पर्वत दुर्गम है, उस पर कौन चढ़ सकता है ? गिरि रूपी दाँत पर पड़कर सौ टुकड़े हो जाएगा। पाताल की खाई लोगों को शंका उत्पन्न करने वाली है, कौन भूगोचर (मन्ष्य) लेका में प्रवेश कर सकता है ? यदि तुम अपने कुल की चिन्ता करती हो तो तुम किस की हो? जनपद में यह बात प्रकाशित है कि जन ने तुम्हारा पोषण किया है। यदि तुम अपना पराभव सोचती हो तो मैं तीनों भुवनों में श्लाघनीय उत्तम और आदरणीय है। यदि इस समय तुम राम के प्रेम के विषय में सोचती हो उसके दर्शन में तुम्हारा दूसरा जन्म हो जाएगा। यदि तुम लक्ष्मी का विचार करती हो तो मैं भी राजा हूँ। हे वीणा के समान बोलने वाली, मन का विमर्दन करनेवाली भद्रे, तुम मेरी महादेवी हो जाओं। घत्ता---हे सीता देखो, मेरी तलवार के पानी में इन्द्र भी डूब जाता है। अपनी सुन्दर भुजाओं से मेरा आलिंगन करो, राम से क्या लेना-देना। (21) हाथियों के सिर के रक्त से लथ-पथ मोतियों के समूह से जिसका अयाल अंचित है, ऐसे सिंह के विद्यमान रहते हुए, हे चन्द्रमुखी, क्या शृगाल से रमण किया जाएगा? हताश राम और लक्ष्मण तो रहे, दशरथ भी हमारा दास है। हे सीते, जब चूड़ामणित्व प्राप्त होता है तो पैरों के आभूषण से क्या प्रयोजन ? और फिर दास की स्त्री के शरीर गुण से क्या, (20) I. A "संगिल" । 2. AP जणधए पयासु । 3. AP हलि अण्णु । (21) I. AP कि किर गुणेण ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy