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________________ 73. 19.3] महाका-पृष्फवंत-विरदय महापुराण [113 णं णं हउँ दूयउ राहवेण पट्टविउ मझु किं आवेण । किंकरु पहुवयणुल्लंघणेण णिदिज्जइ हियकारि विजणेण । अक्खमि भत्तारहु तणिय बत्त मा मरउ महोसह चारणेत्त। इय चितिवि अवसरु मगमाणु । जा णिहुयंगउ थिउ कुसुमबाणु। 10 अथमिउ सूरु ता उइउ चंदु -णं सीहि दुहवल्लरिहि कंदु। आपंडु गंडमंडलि घुलंतु तहु तेउ डहइ अग्गि व जलंतु । अरुणच्छवि णं रामणहु कुद्ध णहसरि णं सियसररुहु विउद्ध । अहवा लइ ससहरु कि णं चारु णहसिरिकरदप्पणु अमॅयसारु । मिगमुद्दइ' मुहिउ कतिपिंड पियलेहह केरउ णं करंडु। मेहलियहि णं संतोसकारि खेयरणाहह" णं पाणहारि। घत्ता-जणलोयणणियरणिवासघरु सुहणिहि अमयकलालउ । ससि सीय" वि रामणतणु डहइ ण खयसिहिसिहमेल उ॥18॥ 19 दुबई-ण सहइ हसद रसइ परु पुच्छइ माणिणिविसयसंगह। कइ दोसणिवहु गुण पयडइ अहणिसु करइ संकह ॥छ।। सिरु धुणइ कणइ णीसासु मुयह सयणयलि पडइ अलिय जि सुयइ। बद्धप्रणय सीता को वाराणसी ले जाता हूँ । परन्तु नहीं नहीं। मैं दूत हूँ। क्या मुझे युद्ध के लिए • भेजा गया है ? भला करने वाले अनुचर की भी प्रभु की आज्ञा के उल्लंघन के कारण लोगों के द्वारा निन्दा की जाती है। इसलिए में पानी की बात कहता हूँ। जिससे सुन्दर नेत्रों वाली वह महासती मरे नहीं। यह सोचकर अवसर की प्रतीक्षा करता हुआ कामदेव हनुमान् जब तक अपना शरीर छिपाकर बैठता है तबतक सूर्यास्त हो गया और चन्द्रमा का उदय हो गया, मानो वह सीता देवी की दुःखरूपी लता का अंकुर हो । एकदम सफेद गंड मंडल पर व्याप्त होता हुआ उसका तेज सीता को अग्नि के समान जलाता है । अरुण छबि वह ऐसा लगता मानो के प्रति ऋद्ध हो, मानो आकाश रूपी नदी में श्वेत कमल खिला हुआ हो, अथवा लो चन्द्रमा सन्दर क्यों न हो, अमत श्रेष्ठ वह आकाशरूपी लक्ष्मी के हाथ का दर्पण है, मगमुद्रा (हरिण लांछनी से मुद्रित मानो वह कांति का पिंड है, अथवा प्रियलेख का पिटारा है मानो मैथिली के लिए संतोषकारी है, मानो विद्याधर राजा के लिए प्राणहारी है। पत्ता-जनों के नेत्रों के समूह का निवासगृह सुखनिधि अमृत कलाओं का घर, चन्द्रमा और सीता भी रावण के शरीर को इस प्रकार जलाती है कि मानो क्षय काल की अग्नि की ज्वालाओं का समूह हो । (19) उसे (रावण को) कुछ भी सहन नहीं होता । वह हंसता है, बोलता है, दूसरों से पूछता है, अपना दोष-समह छिपाता है, गुणों को प्रकट करता है, और मानिनी स्त्रियों के विषय से संगत समीचीन क्रियाओं को करता रहता है। अपना सिर पीटता है, क्रन्दन करता है, नि:श्वास छोड़ता है, शयनतल पर गिर पड़ता है, 6.A सीयाह । 7. A मुग। 8. AP णं खेयरणाहहु । 9.A सीउ; P सीयल । (19) I. A तसइ ण हसइ सरह पर।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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