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________________ 73.17.7] [111 महाका-युष्फयंत-विरार महापुराणु कुद्धिलालयपंतिउ दरमसंतु मुहकमलवाससासहु' चलंतु। थिउ दारि सहइ णं इंदणीलु थिउ भालि गहियवरतिलयलीलु । थिउ उरि धियाहरकिणंक गाई घिउ मणि सरसरपुंखु ब सुहाई। थिउ कामूलि णं मम्मणाई बोल्लइ मणियाई घणघणाई। थिउ उरूयलि सइइ सुराहि “पं.किकिणि कामिणिमेहलाहि । घत्ता-सो महुयरु बम्महु कि भणमि णारिहिं वयणई चुंबई ॥ जाइवि खरिदहु रयणमइ कुंडलकमलि विलंबइ।।16।। 10 दुबई-बुझिवि णयणवयणतणुलिंगहि सीयारइवसं गयं ।। दहबयणं विमुक्कणीसासरुहाणलतावियंगयं ।।छ।। गउ अलि पुरपच्छिमगोउरगु आरूबउ झोयइ' वणु समग्गु। दिट्टी वणसिरि सहुं खेयरोहिं सीय वि परिवारिय खेयरीहिं। वणु देइ ससाहिहि रामविरहु सीयहि पुणु बट्टइ रामविरह। वणि लोह्यिाउ पत्तावलीउ सीयहि पुसियउ पत्तावलीउ। वणि पमयई फलसारं गयाई सीयहि झीणई सारंगयाई। करता हुआ, टेढ़ी केश पंक्तियों को बिदलित कस्ता हुआ, मुख रूपी कमल की सुगंधित हवा से उड़ता हुआ द्वार पर स्थित वह इस प्रकार शोभित था, मानो इन्द्र नीलमणि शोभित हो । भाल पर स्थित होकर वह श्रेष्ट तिलक की शोभा धारण कर रहा था । उर पर स्थित होकर वह प्रिय के प्रहार के चिह्न के समान शोभित था । मन पर स्थित वह कामदेव के तीर के पंख के समान शोभित हो रहा था । कानों के मूल में स्थित होकर मानो वह व्यक्त घन-घन काम वचन बोल रहा था। किसी सुन्दरी के उस्तल पर स्थित होकर ऐसे शब्द कर रहा था, मानो कामिनी की करधनी की किंकिणो हो ? धत्ता–कामदेव के उस भ्रमर को क्या कहुँ ? वह स्त्रियों के मुखों को चूमता है, वह विद्याधर राजा के कुण्डल रूपी कमल पर जाकर बैठता है। नेत्र मुख और शरीर के चिह्नों से यह जानकर कि रावण सीता के प्रति प्रेम के वशीभूत है, और उसका शरीर छोड़े गए निःश्वासों से उत्पन्न आग से संतप्त है। भ्रमर चला गया और नगर के पश्चिमी गोपुर के अग्र भाग पर स्थित होकर समग्र वन को देखता रहा। विद्याधरियों के साथ उसने वनश्री को देखा। और सीता को भी विद्याधरियों से घिरा हुआ। वन अपनी शाखाओं के द्वारा स्त्रियों को विशेष एकान्त देता है, परन्तु सीता के लिए केवल राम का विरह है। वन में लाल-लाल पत्रावलियाँ थीं, परन्तु सीता की पत्रावलि (पत्ररचना) पुछ चुकी थी। वन में प्रमद (वानर) श्रेष्ठ फल पर है, लेकिन सीता के श्रेष्ठ 4. AP °सासवासह । 5. AP हारि। 6. A भाइ ? जाइ। 2. AP विहाइ। 8. AP मणियार व प्रण। 9.AP वत्तई। (17) 1 P जोइय । 2. Pझीणाई।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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