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________________ 12. 12. 11] 195 महाकइ-पुष्यंत-चिरइयउ महापुराण ता णिवह हियउं रोमंचियउं तं जाइवि' कुसुमहि अंचियउं । णिवमंतिहिं इय बोल्लिड वयणु एंवहि कहि चुक्कइ दहवयणु। संभूयउं भवणि चक्करयणु आणिउं अण्णेक्कु वि मिगणयणु । जंतं कलत्तु रामह तणउं अप्पिज्जउ धणचक्कलथणउं । उप्पाउणयरि भीयह हवइ तं णिणिविणहरिंद लवइ । उप्पण्णु चक्कु सीयागमणि किं तुम्हडं अज्ज वि भंति मणि । घता-छिदिवि अरिसिरई असिकंपावियदेवासुरु ॥ भरहह हउं जि पहु सिरिपुप्फयंतभाभासुरु ।।12।। 10 इय महापुराणे तिसद्विमहापरिसगुणालंकारे महाभव्यभरहाणुमण्णिए महाक इपुप्फयंतविरइए महाकव्वे सीयाहरणं णाम दुसत्तरिमो परिच्छेओ समत्तो ।।72॥ रावण का हृदय रोमांचित हो उठा और उसने जाकर फूलों से उसकी अर्चा की। राजा के मंत्रियों ने यह शब्द कहे-हे दशवदन, तुम इस समय क्यों चूकते हो। तुम्हारे घर में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है । और एक और जो मृमायिनो तुम ले आएं हो वह राम की पत्नी है। घन गोल स्तनों वाली उसे तुम वापस कर दो। नगर में भीषण उत्पात होगा। यह सुनकर विद्याधर राजा कहता है कि सीता के आगमन से ही चक्ररत्न की प्राप्ति हुई है। क्या आप लोगों के मन में आज भी भ्रांति है? पत्ता-मैं शत्रु का सिर काटूंगा? अपनी तलवार से देव और असुरों को पाने वाला तथा सूर्य और चन्द्रमा के समान में ही भरत क्षेत्र का स्वामी हूँ। प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का सीताहरण नाम का बहत्तरवा परिच्छेद समाप्त हवा । 6.AP महिवहवउ । 7.A जोइवि। 8. AP सुवह पडिवज्जइ दह। 9. AP भवणि वि। 10P अप्पिज्जद्द । 11. AP यहछ। 12. AP छिदमि। 13. AP बहसरिो ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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