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________________ ४२. ५. २१] महाकवि पुष्पदन्त विरचित गम्भम्मि अवयरिउ जणणीइ उरि धरिउ। सो वइजयंतेंदु पुण्णिमइ णं चंदु। कयजयरवालाइ आवेवि लीलाइ। करधरियवीणाइ सहुँ तियससेणाइ। तं णयरु तं भवणु सा जणणि सो जणणु । अंगंतरंगत्थु वंदेवि मुंणितित्थु । गउ सयमहो तेत्थु सविमाणु तं.जेत्थु । रयणप्पहाकिट्ठि पुणु विहिय वसुविट्ठि। जक्खीकडक्खेण तूसे वि जक्खेण । ता जाव णवमास संपुण्णविहलास। केवलसिरीरिद्धि अहिणंदणे सिद्धि। हयदियहपाडीहिं णवलक्खकोडीहिं। जइया गया ताह सायरसमाणाहं । तइया महंतेण पुण्णण होतेण । चित्ताइ पिउजोइ पविमलदिसाटोई। तिण्णाणमयदिहि पंचमउ परमेट्टि। संभूउ सो जाम __ संखुहिय सुर ताम। घत्ता-णाणावाहणहिं दिसि दिसि झुल्लंतवडायहिं । आइउ अमरवइ सहुचउँविहअमरणिकायहिं ।।५।। अवतरित हुआ और अत्यन्त विनोत माने उस वैजयन्त देवको अपने उदरमें धारण किया, जैसे पूर्णिमाने चन्द्रमाको धारण किया हो। तब इन्द्रने जय-जय शब्द करती हुई हाथमें वोणा धारण करनेवाली देवसेनाके साथ लोलापूर्वक आकर, उस नगर, उस भवन, उस माता, उस पिता और शरीरके भीतर स्थित मुनितीर्थकी वन्दना को। और वह वहां चला गया जहां उसका अपना विमान था। फिर यक्षिणीके कटाक्षसे सन्तुष्ट होकर यक्षने रत्नोंकी प्रभाको आकृष्ट करनेवाली धनवृष्टि तबतक की कि जबतक विकलोंको आशा पूरी करनेवाले नौ माह नहीं हुए; जब तीर्थकर अभिनन्दनको केवल श्रीरूपी ऋद्धि सिद्ध हुई थी, तबसे नौ लाख करोड़ सागर दिवस परिपाटीके गुणित होनेपर ( बीतनेपर ); तब महान् पुण्यके योगसे चित्रा नक्षत्रमें ( माघ शुक्ला एकादशी ); दसों दिशाओंका विस्तार जिसमें निर्मल है, ऐसे पितृयोगमें, तीन ज्ञानोंको दृष्टिवाले पांचवें परमेष्ठी जब उत्पन्न हुए तो देवलोक क्षुब्ध हो उठा। पत्ता-नाना वाहनों दिशा-दिशामें झलती हुई पताकाओं और चार प्रकार के अमरनिकायोंके साथ इन्द्र आया ॥५॥ ५.१. A जणषोउरे । २. P करि परिय। ३. A P मुणि तेत्थु । ४. P हयदियहणाहीहिं । ५. A P पविमलदिसाहोइ; T दिसाभोइ दशदिशाटोपे । ६. P adds after this: एयादसिर पक्खि, सिए चंद महारिक्खि । ७. A बहुविहअमर ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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