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________________ [ ४१. ९.३ महापुराण सरगंभीरं पणकुच्चारं साहाकारं काऊणं अग्छ पत्तं गंधं धूवं चरुवं दीवं दाऊणं । दुण्णयेतावं मिच्छागावं दुक्कियभावं महिऊणं पव्वयसरिसे पयणियह रिसे कंचणकलसे गहिऊणं । आसासंते रवियरवंते गयणयलंते चरिऊणं भंगरउहे खीरसमुद्दे खिप्पं खीरं भरिऊणं । कीलालोलं गेयरवालं सुरवरमालं रइऊणं ते जलवाहे जियजलवाहे हत्थाहत्थं लइऊणं । सोहम्मेणं ईसाणेणं तियसयेणेणं संण्डविओ। दाउं वास कुसुमं भूसं तेहिं जिणिंदो पुणु णविओ । सिंगुत्तुंगं वसियकुरंग मेलं मोत्तुं वारिदरिं णरेसोक्खयरि कोसलणयरिं आगंतूणं पुरिसहरिं । णयणिरयाणं गुरुपियराणं दाउं णहयलदिण्णपया हरिसविसटुं रईउं देवा सग्गं झ त्ति गया। पत्ता-सज्जणहं णेहु दिहि दुत्थियहं तरुणिहि पेम्मैपहावउ । __णाहे वड्ढ़तें वढियउ पिसुणहं मणि संतावउ ।।९।। जोवणभावें देहि चडतें __ घडियामाणे काले जंतें। देहपमाणु पत्तु रणचंडहं सड्ढई तिण्णि सयई धणुदंडहं । दर्भासन बिछाकर, गम्भीर स्वरमें ओम्के साथ स्वाहाका उच्चारण कर अर्घ-पत्र-गन्ध-धूप-चरु और दीप देकर, दुर्नयका सन्ताप, मिथ्यागर्व और पापभावका नाश कर, पर्वतके समान हर्षको उत्पन्न करनेवाले स्वर्णकलशोंको लेकर, उच्छपासोंके मध्य, सूर्य की किरणोंसे यक्त आकाशमें चल कर, भंगिमासे भयंकर क्षीर समुद्र में शीघ्र जल भरकर, क्रीड़ासे चंचल, गीतोंसे सुन्दर सुरवरोंकी पंक्ति रचकर, मेघोंको जीतनेवाले उन कलशोंको हाथों-हाथ लेकर, सौधर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र और देवजनोंने स्नान कराया तथा वस्त्र-भूषण देकर, उन्होंने जिनेन्द्रको फिर नमस्कार किया। फिर शिखरोंसे ऊंचे हरिणोंसे बसे हुए जलयुक्त घाटियोंसे युक्त सुमेरु पर्वतको छोड़कर, मनुष्योंको सुख देनेवाली अयोध्या नगरी में आकर न्यायरत उन पुरुषश्रेष्ठको माता-पिताको देकर और हर्षविशिष्ट नाट्यका अभिनय कर वे शीघ्र स्वर्ग चले गये। पत्ता-स्वामीके बढ़नेपर सज्जनोंका स्नेह, दुःस्थितोंका भाग्य, युवतियोंका प्रेमभाव और दुष्टोंके मनमें सन्ताप बढ़ने लगा ॥९॥ १० यौवनभावसे उनकी देह बढ़ती गयी, और घड़ीके मानसे समय बीतता गया। उनके शरीर २. A दुग्णयभावं । ३. P गहिऊगं । ४. P हत्थाहत्थे गहिऊणं । ५. A तियसवरेणं । ६. P संग्रहविउं । ७. Pणविउं । ८.A घोरदार । ९. P"सोक्खयरी। १०. Pणयरी। ११. Aणरणियराणं । १२. P रइयं णटुं । १३. P णेहपहावउ । १०.१. A देह चडतें । २. A P घडियामालें ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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