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________________ -४१. २.७] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सुजायमसरीरिणं णिहणिऊणमसरीरिणं। जमीसममरच्चियं गुणणिसेणियाहिं चियं । अहं समहिणंदणं पणविऊण धीणंदणं। भणामि तव्ववसियं किर कह तिणा ववसियं वणे चडुलवाणरे सुहयमाणिणीवाणरे । मुएउ मा णा सणं सुणउ पावणिण्णासणं। इमं सुकियवासणं लहउ सम्मईसासणं। घत्ता-जिंव सुयकेवलि जिंव तियसवइ जिंव पुणु थुणउ फणीसरु ॥ हउं णरु जीहासहसेण विणु किं वण्णवि परमेसरु ॥१॥ सालतालतालीदुमोहए मेरुसिहरिपुवे विदेहए। संचरंति करिमयरसंतई वहइ गहिर सीया महाणई। तीई तीरि दाहिणइ पविउले चूयचारफलघुलियसंविउले । वारिवाधाराहि सित्तए मुग्गमासजववीहिछेत्तैए। छेत्तवालिणीसहसंगए दिण्णकण्णसंठियकुरंगए। बेकरतबहुदुद्धगोहणे वच्छमहिसवसहिंदसोहणे। सव्वधण्णछण्णे अणसरे सरतरंत किंणरवहूसरे। वाले हैं, जो सुजात सिद्ध और दारिद्रयरूपी ऋणका नाश करनेवाले हैं, ईश्वर जो देवोंके द्वारा पूज्य हैं, जो गुणरूपी सीढ़ियोंसे समृद्ध हैं, ऐसे बुद्धिको बढ़ानेवाले अभिनन्दनको प्रणाम कर उनके व्यवसित (चरित ) को कहता हूँ कि जिसकी उन्होंने चेष्टा की। जिसमें चटुल वानर हैं, और जो सुन्दर मानिनियोंके लिए पीड़ाजनक है, ऐसे संसाररूपी वनमें मनुष्य शब्दको न कहे, (चुप रहे) तथा पापका नाश करनेवाले उस शब्दको ( कथान्तरको ) अवश्य सुने, जिसमें पुण्य ( सुकृत) की वर्षा है, तथा सन्मतिके शासनको प्राप्त करे। पत्ता-जिस प्रकार श्रुतकेवली इन्द्र, और जिस प्रकार नागेश्वर स्तुति करता है, मैं मनुष्य, हजारों जीभोंके बिना परमेश्वरका वैसा वर्णन कैसे कर सकता हूँ? १॥ सुमेरुपर्वतके पूर्वमें शाल और ताल तथा ताली वृक्षोंके समूहसे युक्त विदेह क्षेत्रमें गजों और मगरोंको परम्परा जिसमें संचरण करती है, ऐसी गम्भीर सीता नदी बहती है। उसके विशाल दक्षिणी किनारेपर मंगलावती भूमिमण्डल ( देश ) है, जिसके आम्र और चार वृक्षोंपर विशाल पक्षिकुल आन्दोलित है, जो मेघकी धाराओंसे अभिषिक्त है। जिसमें मूंग, उड़द, जौ और धान्यके खेत हैं । जो क्षेत्रोंको रखानेवाली बालिकाओंके शब्दसे युक्त है, जिसमें हरिण कान दिये हुए बैठे हैं, अत्यधिक दूध देनेवाला गोधन जिसमें रंभा रहा है, जो बछड़ों, महिषों और वृषभेन्द्रोंसे शोभित है, जो सब प्रकारके धान्योंसे आच्छन्न और उपजाऊ है। जिसके सरोवरोंमें किन्नर वधुएँ ४. A मसिरीरणं । ५. P गुणिणिसेणि । ६. A चटुलवाणरे; P चवलवाणरे । ७. A जिण पुणु । २. १. A पुत्वविदेहए। २. A संचरंत । ३. A ताइ। ४. P पविउले । ५. A मुग्गमाह। ६ छत्तए । ७. A वेकरंतबहुबुद्ध; P बुक्करंत ।।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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