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________________ ४२ १० १५ २० ri अपमा पविभिन्वसुरीयमं जंतवावेणुग् अणुहुत्त संसारयं दूरुज्झि संसारयं महापुराण १० Faणं पिमयं । णिदिय सोंडसुरीयमं । जेण वीयरा उग्गयं । बद्धं हरिसा रयं । ण हि संसासंसारयं । जं देवं कं पावणं । सिद्धिपुरंधियारयं । पट्टाणि अयारयं । अरुहं निरहंकार | तसं परमक्खरं । [ ४०.१.९ देवासुरकंपावर्ण जयपायडियसयारयं कंतं तीइ अयारयं बी सरकार उयरलीणसयलक्खरं तं वंदेहं संभवं । भुवणकुमुयवणसंभवं 'ओसारियअसिआरसं "णविऊणं असिआउस । जोक | भणिमो संभव संक धत्ता-तियसिंदफर्णिदहिं खयरणरिंदहिं जं धुवइ कयपंजलिहिं | हुं सुकइत्तणु अमिडं पियह कण्णंज लिहिं ॥ १ ॥ तंकित arr किया है । जो अनेक नयोंसे प्रमाणको स्थापित करनेवाले हैं, जो ज्ञानसे अप्रमाण ( सीमा रहित ) हैं; और जो स्वपरको ज्ञानरूपी लक्ष्मीको प्राप्त करानेवाले हैं, जिन्होंने भव्यजनों के लिए देवोंका आगमन करवाया है, जिन्होंने मद्यको प्रशंसा करनेवाले शास्त्रोंकी निन्दा की है, जो तपभावसे उग्र हैं और जिन्होंने वीतराग भाव उत्पन्न किया है, जिन्होंने अनन्त सुखका अनुभव किया है, जो हर्षसे पापमें लिप्त नहीं हैं, जिन्होंने संसारको छोड़ दिया है, और जो प्रशंसा या अप्रशंसामें रत नहीं हैं, जो देव और असुरोंको कँपानेवाले हैं, उस देवके समान पवित्र कौन है ? जिन्होंने जगमें सदाचारको प्रकट किया है, जो सिद्धिरूपी इन्द्राणीमें सदारत हैं, जो मुक्तिरूपी कान्ता दूतरहित स्वामी हैं, जिनके नामके प्रथम अक्षर में 'अ' और दूसरे स्थान में 'र' सहित हकार है ( अर्थात् अर्हत् ), जिसके भीतर समस्त अक्षर लीन हैं, जो मन्त्रेश और परम अक्षर हैं, जो भुवनरूपी कुमुदवनके लिए चन्द्रमा हैं, ऐसे उन सम्भवनाथ की मैं वन्दना करता हूँ । जिन्होंने लक्ष्मी और आयुका निवारण कर दिया है, ऐसे पंचपरमेष्ठीको प्रणाम कर जन्म दुःख की शंकाका नाश करनेवाले सम्भवनाथकी कथा कहता हूँ । पत्ता - देवेन्द्रों, नागेन्द्रों और विद्याधरेन्द्रोंके द्वारा जिनको हाथ जोड़कर स्तुति की जाती है, ऐसे जिनके गुणकीर्तन और मेरे सुकवित्वरूपी अमृतको कर्णरूनी अंजलियों द्वारा दियो || १ || 3. A P_add after this: देवं जं सुषमाणय; T seems to omit it. ४. P सवरे दरिसियायमं । ५. Padds after this : सवरेवि परमायमं; T seems to omit it ६. P सुरामयं । ७. A पढमट्ठाण अयारयं । ८. A सुमहिय सरहंकारयं । ९ AP add after this : पाइय ( A झाइय ) णिरहंकारयं पावियमाइककारयं । १०. AT ओहामिय; Pऊसारियं । ११. A भरणं ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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